गुरुवार, 29 अक्टूबर 2020

रेल की खिड़की से


धरती

भाग रही है पीछे

पेड़ पहाड़ सबके साथ

भ्रम ही तो है यह। 


पसरा हुआ अंधेरा 

कर रहा है संवाद

स्मृतियों में कौंध रहा है

गाव, खेत खलिहान

उदास दालान 

और सुख की इच्छा में 

हमारा भागना 

एक और भ्रम है। 


दुनिया भर की रोशनी 

रेल के दोनों किनारों पर 

जला देने से भी

छूटते हुए गांवों से उपजा अंधेरा 

नहीं हो सकता दूर। 


खिड़की बंद कर देने से 

बाहर की हवा भीतर नहीं आएगी

छूटने की पीड़ा हो जाएगी हल्की 

यह एक और भ्रम है।

मंगलवार, 27 अक्टूबर 2020

लुईस ग्लूक की कविता "अक्तूबर"

 प्रस्तुत है लुईस ग्लूक की कविता "अक्तूबर" शृंखला की पहली कविता का अनुवाद 

अक्टूबर : लुईस ग्लूक

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क्या आ गई है फिर से सर्दी ,

क्या फिर से हो रही है ठंढ

क्या वह फिर से धंस गया है बर्फ में

क्या वह ठीक नहीं हुआ

क्या बसंत के बीज़ रोपे नहीं गए


क्या रात का अंत नहीं हुआ

क्या पिघलते बर्फ से बंद नहीं हुआ
छोटी नदियों को लबालब भरना !

 

क्या मेरा शरीर बचा नहीं

क्या मैं नहीं अब सुरक्षित?


क्या मेरे ज़ख्मों के निशान

हो गए हैं अदृश्य, नहीं दे रहे किसी को दिखाई?

 

आतंक और हाड़ कँपाती ठंड

क्या खत्म नहीं होंगे

क्या घर के पीछे का बगीचा

तैयार नहीं होगा, क्या रोपे नहीं जाएंगे इसमें पौधे !


मुझे स्मरण है कैसा महसूस कर रही थी धरती, 

लाल और गहन रोष

ऐसे में क्या 
समानान्तर नहीं लगाए गए थे बीज़

क्या लताएँ दक्षिणी दीवारों पर नहीं चढ़ी थी !


अब मैं फिक्र नहीं करती

कि कैसा लगता है किसी को

जब मुझे चुप कराया गया था

कैसा लगा था मुझे, बेमानी है अब इसका वर्णन करना

जिसे बदला नहीं जा सकता हो, उसके बारे में जानना कैसा लगता है ?


क्या रात का अंत नहीं होगा,

जब गर्भ में रोपा गया बीज़, 
क्या धरती नहीं थी सुरक्षित !


जब धरती के लिए बहुत जरूरी था 
तब क्या हमने नहीं रोपे बीज !


जो बीज़ रोपे गए, क्या उनमें फल लगे?


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मूल कविता 

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October :Louise Glück


Is it winter again, is it cold again,
didn’t Frank just slip on the ice,
didn’t he heal, weren’t the spring seeds planted

didn’t the night end,
didn’t the melting ice
flood the narrow gutters

wasn’t my body
rescued, wasn’t it safe

didn’t the scar form, invisible
above the injury

terror and cold,
didn’t they just end, wasn’t the back garden
harrowed and planted–

I remember how the earth felt, red and dense,
in stiff rows, weren’t the seeds planted,
didn’t vines climb the south wall

I can’t hear your voice
for the wind’s cries, whistling over the bare ground

I no longer care
what sound it makes

when I was silenced, when did it first seem
pointless to describe that sound

what it sounds like can’t change what it is–

didn’t the night end, wasn’t the earth
safe when it was planted

didn’t we plant the seeds,
weren’t we necessary to the earth,

the vines, were they harvested?




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शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020

जंगली परिजात* लुईस ग्लूक

 वर्ष 2020 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत कवयित्री लुईस ग्लूक की प्रसिद्ध  कविता "The Wild Iris" का अनुवाद ।   


जंगली परिजात* 

लुईस ग्लूक  
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जहाँ ख़त्म होते थे मेरे दुःख 
उसके आगे था एक दरवाजा 

तुम्हे बता दूँ कि  जिसे तुम मृत्यु कहते हो 
उसे मैं सदैव याद रखती हूँ ।  

बाहर का अनन्य शोर , देवदार की झूलती शाखाएं 
निढाल ढलता सूरज समा रहा है 
बंजर धरती के आगोश में । 

ऐसे मे बचे रहना चुनौतीपूर्ण है 
क्योंकि दफन हो रही हैं  संवेदनाएं 
धीरे धीरे धरती के अंधेरी कोख में । 

अचानक झुक रही है पृथ्वी एक ओर
भय से आत्मा सन्न है 
असमर्थ है बोलने से 
और खत्म हो रहा है सब कुछ 
जैसे खतरे में है झाड़ियों में रहने वाली चिड़िया । 

आप जैसे लोग 
जिन्हें याद नहीं इस दुनिया की यात्रा 
उन्हें बताना चाहती हूँ कि
उठा सकती हूँ मैं अपनी आवाज़ फिर से 
विस्मरण से जागने वालों की 
आवाज़ हूँ मैं । 

मेरे भीतर से निकलती है 
एक विशाल नदी
गहरे नीले समुद्र के वितान पर 
छाया हुआ नीला आसमान 
बसता है मेरे  भीतर  । 

- अनुवाद : अरुण चंद्र रॉय 
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*एक प्रकार का नीला फूल । 

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2020

बच्चे जो डूब गए - लूइस ग्लूक

वर्ष 2020 में साहित्य के लिए नोबल पुरस्कार से पुरस्कृत कवयित्री लुईस ग्लूक की प्रसिद्ध  कविता "The Drowned Children" का अनुवाद । 



बच्चे जो डूब गए 
- लूइस ग्लूक 


 जब उनके पक्ष में 
नहीं है कोई निर्णय 
फिर बेहतर है  उनका डूब जाना ही।  

चलिए, भीषण सर्दी में सबसे  पहले 
उन्हें बर्फ के भीतर डुबोते हैं 
उनके पूरी तरह मर जाने के बाद 
जब शरीर पानी से ऊपर उठकर तैरेगा 
साथ में तैरेंगे उनके ऊनी स्कार्फ 
बर्फ से भरे तालाब ले लेगा उन्हें 
अपने असंख्य अँधेरे बाहों के गहन आगोश में।  

किन्तु उन बच्चों  को मौत आनी चाहिए
कुछ अलग तरह से  
जीवन के शुरू होने के बाद जल्दी ही  
हालांकि वे हमेशा से ही रहे हैं 
रतौंधी के शिकार और कम  वज़न वाले, कुपोषित।  
अतः बाकी सब स्वप्न है कि 
उनके मृत शरीर को नसीब हो 
रौशनी, और श्वेत धवल कफ़न
जैसे सजा होता है मेजपोश।  

सर्द तालाब में 
धीरे धीरे डूबते हुए उन्हें सुनाई देती है 
माता पिता की आद्र  पुकार - 
"क्या कर रहे हो वहां, किसका इन्तजार कर रहे हो !!
आ जाओ घर, घर आ जाओ,लौट आओ !!
और धीरे धीरे वे डूब जाते हैं गहरे नीले पानी में 
हमेशा के लिए। 

(अनुवाद : अरुण चंद्र राय ) 


मूल कविता 
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The Drowned Children

You see, they have no judgment.
So it is natural that they should drown,
first the ice taking them in
and then, all winter, their wool scarves
floating behind them as they sink
until at last they are quiet.
And the pond lifts them in its manifold dark arms.

But death must come to them differently,
so close to the beginning.
As though they had always been
blind and weightless. Therefore
the rest is dreamed, the lamp,
the good white cloth that covered the table,
their bodies.

And yet they hear the names they used
like lures slipping over the pond:
What are you waiting for
come home, come home, lost
in the waters, blue and permanent.

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