हम भीड़ की हिंसा पर तो तुरंत भड़क जाते हैं, लेकिन हवा में घुला ज़हर हमें शायद उतना दर्द नहीं देता, जबकि वही सबसे पहले हमारे शरीर को तोड़ता है। मैं कई बार महसूस करता हूँ कि हम अपनी रोज़मर्रा की आदतों में इतना उलझ जाते हैं कि इस धीमी मौत को पहचान ही नहीं पाते।
धुआं जिस दिन मत दिलवाने का कारण बन जाएगा खून भी खौलाएगा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंअत्यन्त सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहम भीड़ की हिंसा पर तो तुरंत भड़क जाते हैं, लेकिन हवा में घुला ज़हर हमें शायद उतना दर्द नहीं देता, जबकि वही सबसे पहले हमारे शरीर को तोड़ता है। मैं कई बार महसूस करता हूँ कि हम अपनी रोज़मर्रा की आदतों में इतना उलझ जाते हैं कि इस धीमी मौत को पहचान ही नहीं पाते।
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