वृक्षों की खोई हुई साँसें
कोलीन जे. मैकलेरॉय
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शहरीकरण का शिकार होने से पहले यह शहर
शहरीकरण का शिकार होने से पहले यह शहर
गायों के चारागाह सा था हरियाली से भरपूर
नदियों में तैरते थे बांसों के बने नाव
पक्षियां उनपर बैठ तिरती थीं बेख़ौफ़
उत्तर की तरफ जाने सड़क घिरी थी वनों से
लोग कहते थे सौ सालों तक ये वन रहेंगे मौजूद
उनदिनों सड़क के दोनों तरफ लगे थे घने वृक्ष
जिसकी छाया में सुस्ताते थे
घुमन्तु हिप्पी और चहकते बतख एक साथ
ये वर्षावन थे जिन्हें हमने समझ लिया था बेकार और फालतू
जो अपनी छाया में देते थे सूरज की किरणों को भी आश्रय
जिनकी चमक से हवाएं गुनगुनाती थी मधुर संगीत
और पत्तियां महकाती थीं हवाओं को खुलकर लेने के लिए सांस
और हमने सोच लिया कि इनका रचयिता
कभी नहीं लौटेगा पूछने इनका हाल
और यह स्वर्ग बना रहेगा हमेशा हमेशा के लिए !
कितने गलत थे हम।
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- अरुण चंद्र राय
वाह
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
हटाएंहृदयस्पर्शी. सहज अनुवाद के लिए अरुण जी का अभिनन्दन और हार्दिक आभार. नमस्ते.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नूपुर जी
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