शुक्रवार, 4 जुलाई 2025

जैसी भाषा थी


(समकालीन अमरीकी कवयित्री एंड्रिया रेक्सिलियस की कविता "The way language was"  का अनुवाद )  


(अनुवाद : अरुण चंद्र राय ) 

जिस दिन वन में हिरण मरा,
मैं अपने घर में ज़िंदा था ।

मैं टूटते हिमनदों के बर्फीले मैदान में भी ज़िंदा था 
जबकि चीख रहे थे गला फाड़ फाड़ कर 

चीर के दरख़्त। 

 
जिस दिन प्यारी छोटी चिड़िया रो रही थी 

सियार जंगलों  के आग से भयभीत होकर से भाग रहे थे 

उस दौरान भी मैं ज़िंदा था।  


मैं कहीं और जाकर बस जाना चाहता था 

और इसकी चिंता ही मेरा धर्म था।  


 यह पृथ्वी तब भी थी जब नहीं थे वृक्ष 

जब नहीं लगी थी जंगलों में आग  

तब मैं भी नहीं था । 


और जब हिरण  वनों में जल रहे 

अपने घर में मैं देख रहा हूँ  सपने।  


फिर पड़ा सूखा,आया अकाल 

पसर गया सन्नाटा चारो तरफ 

सेब की तरह लाल लपटें
घुस गई हैं मेरे  गले के भीतर 

और मैं फुफकार रहा हूँ 

जंगल के आग की तरह।  

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