1.
जीवन के बाद
एक नया जीवन है
मृत्यु
2.
लोभ, मोह
माया से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
3.
अपने पराए
निकट दूर की आसक्ति से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
4.
राग द्वेष
स्पृह से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
1.
जीवन के बाद
एक नया जीवन है
मृत्यु
2.
लोभ, मोह
माया से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
3.
अपने पराए
निकट दूर की आसक्ति से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
4.
राग द्वेष
स्पृह से परे
एक नया जीवन है
मृत्यु
1.
मैं अक्सर शामिल हो जाता हूँ
शवयात्रा में
चाहे बुलाया गया हो या नहीं
केवल इस लोभ में कि
मेरे शव के साथ भी खड़े होने
दस बीस लोग !
2.
मैं आते जाते
परिचित अपरिचित
धर्म जाति के भेद से परे जाकर
किसी भी शवयात्रा में
चल पड़ता हूँ
कई बार अपना जरूरी काम छोडकर भी
और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाता हूँ
'राम नाम सत है , सबकी यही गत है'
ताकि मेरे भीतर के अहंकार की लहक पर
पड़े थोड़ा पानी
जैसे नहलाया जाता है मृत शरीर
किन्तु कहाँ मरता है मेरा अहंकार अब भी !
3.
शव-यात्रा में
अब सुबुकते, मौन,
सदमे में थमी आँखों वाले
परिवारजन, रिश्तेदार, दोस्त आदि
कम ही दिखते हैं !
1.
अंत नहीं
परिवर्तन है
मृत्यु
2.
सेतु है
जन्म और मोक्ष के बीच की
मृत्यु
3.
पुनर्जन्म के लिए
अनिवार्य है
मृत्यु
मेरे कई दोस्त
जो जानते हैं मुझे
मेरी पत्नी के जीवन में आने के पहले से
उन्होने कहा
पागल हो गए हो तुम
कहीं कुछ परेशानी तो नहीं
और कोई परेशानी तुम्हारा क्या बिगाड़ेगी
हमने देखा है तुम्हारा
दुर्धर्ष संघर्ष
क्यों लिख रहे हो
मृत्यु पर कवितायें !
मेरी पत्नी ने
अपने आँचर को फैला दिया
अपनी देवी के आगे
और विनती करने लगी कि
रहूँ मैं सुरक्षित
रखने लगी मेरी अतिरिक्त ध्यान
करने लगी तमाम परहेज
जो अक्सर करना चाहिए
पचास की उम्र के बाद के लोगों को
उसने तो अपने आराध्य देवों से मांग भी ली है
कि सजाती रहे अपनी मांग में सिंदूर
पहनती रहे सावन में हरी चूड़ियाँ
एक गहन चुप्पी में जा बैठी है वह
मृत्यु पर मेरी कविताओं को देखकर !
मेरे बच्चों ने खंघाल लिया है
मेरा सोशल मीडिया प्रोफाइल
उन्होने बात कर ली है मेरे दोस्तों से
मेरे साथ उठने बैठने वाले लोगों से
वे जानना चाहते हैं
कि मजदूरों पर कविता लिखने वाले उनके पिता
क्यों लिखने लगे हैं
मृत्यु पर कविता !
मेरे भाई, बहिन, उनके बच्चे
कुछ नजदीकी और दूर के रिश्तेदारों
जिनके साथ रही है मधुरता
जिनके कमी बेसी में हाजिरी देता आया हूँ
उन्होने भी घूमा फिरा कर पूछ ही लिया है
कि क्यों लिख रहा हूँ मृत्यु पर कवितायें !
मैं सोच रहा हूँ इन्हें नहीं पता
कैसा महसूस किया होगा पिता ने दादाजी की मृत्यु पर
मुझे याद आ रहा है कि
पिता के मृत शरीर को देख
सूख गई थी आँखें , डबडबाई तक नहीं थी
और छोटे भाइयों को गले लगाकर बस इतना कहा था -
मैं हूँ न अभी
और लगा था अचानक भाइयों का पिता हो गया हूँ मैं !
मृत्यु के बाद कैसे और अधिक प्रिय हो गए थे पिता
उनकी अच्छी अच्छी बातें ही याद आ रही थी
वैसे तो नहीं रही थी तल्खियाँ उनके साथ
यदि कोई थी भी तो वे विस्मृत हो गई थी !
माँ की मृत्यु के बाद
पहली बार लगा था कि अनाथ हो गया हूँ मैं
और फिर भी मेरी आँखें भरी नहीं
सूखी ही रही पलकें
कि रोज़ ही कितने बच्चे हो जाते हैं अनाथ !
किसी से कितना प्रेम है
इसका हो सकता है यदि कोई पैमाना
वह है मृत्यु ही
पेड़ों की मृत्यु पर यूं ही नहीं रोते हैं पहाड़
पहाड़ों के धराशायी होने पर
नदियों का उफन कर बिलखना भी
यही साबित करता है !
विछोह में प्राण गँवाने वालों की के प्रति खबर पढ़कर
हम नहीं माप सकते हैं उनकी पीड़ी, उनका प्रेम
कई बार प्रेम को साबित करने के लिए
चुनना पड़ता है मृत्यु
जिनकी कहानियों से भरे पड़े हैं इतिहास के पन्ने !
मृत्यु से बचने के लिए
नहीं है कोई मंत्र
नहीं बना कोई तंत्र
जब भी मृत्यु पर विजय का किया गया कोई दावा
वह अब तक रहा है असफल ही !
जिन्हें प्रज्ञान है
मृत्यु की अनिवार्यता के बारे
वे भीतर से होते हैं शांतचित्त
दुख, पीड़ा और सुख में भेद करना
उन्हें समय का अपव्यय लगता है
वे करते हैं जीवन से प्रेम
वे जानते हैं मृत्यु ही है
अंतिम प्रेम !