1.
मैं अक्सर शामिल हो जाता हूँ
शवयात्रा में
चाहे बुलाया गया हो या नहीं
केवल इस लोभ में कि
मेरे शव के साथ भी खड़े होने
दस बीस लोग !
2.
मैं आते जाते
परिचित अपरिचित
धर्म जाति के भेद से परे जाकर
किसी भी शवयात्रा में
चल पड़ता हूँ
कई बार अपना जरूरी काम छोडकर भी
और ज़ोर ज़ोर से चिल्लाता हूँ
'राम नाम सत है , सबकी यही गत है'
ताकि मेरे भीतर के अहंकार की लहक पर
पड़े थोड़ा पानी
जैसे नहलाया जाता है मृत शरीर
किन्तु कहाँ मरता है मेरा अहंकार अब भी !
3.
शव-यात्रा में
अब सुबुकते, मौन,
सदमे में थमी आँखों वाले
परिवारजन, रिश्तेदार, दोस्त आदि
कम ही दिखते हैं !
सत्य है यही एक सत्य है |
जवाब देंहटाएंसमय के साथ बदलाव शवयात्रा में भी दृष्टिगत है।
जवाब देंहटाएंलोग शायद सहज होते जा रहे हैं मृत्यु को स्वाभाविक
प्रक्रिया मानकर।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अगस्त २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
एक मृत्यु ही है जो परम सत्य है, एक बेहतरीन रचना 🙏
जवाब देंहटाएंसत्य को उजागर करती मार्मिक रचना सादर
जवाब देंहटाएंEk shavyatra ke baad man sambhaav mein rehta hai bahut din.
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