प्रेम
दरअसल है
एक बड़ा झूठ है
आसमान से तारे
नहीं लाए जा सकते हैं
तोड़कर
अन्यथा आसमान हो गए होते खाली
और धरती पर सुबुक रहे होते सब तारे
या टूटे हुए तारों को देख कर
मांगी गई मन्नतें भी
नहीं होती हैं पूरी
नहीं तो सिसक नहीं रही होती नदियां
बांधों के भीतर
प्रेम में देने वाले जान
वास्तव में होते हैं बेहद कमजोर
जो नहीं खोद सकते खेत
उपजाने के लिए अन्न
और और ऐसे कमजोर लोग
नहीं होने चाहिए प्रेरणा।
प्रेम वह है जिसे हम
प्रेम कहते ही नहीं
जैसे यदि कभी दिखे
किसी बूढ़े को सड़क पार कराते युवा
तो समझिए वह प्रेम में है, उसके भीतर है
एक कोमल हृदय
या फिर सड़क बुहारती स्त्री
सुबह सुबह मुझे प्रेम में पड़ी प्रतीत होती है
जिसके केंद्र में होते हैं बच्चे, परिवार
किंतु इन चित्रों को नहीं रखा जाता है
प्रेम की श्रेणी में।
क्षमा करना प्रिय !
मेरा प्रेम, दुनिया के प्रेम से है
थोड़ा अलग।
मेरे प्रेम हैं
नदी, आसमान, आग, पानी, हवा, पहाड़, खेत
और सब के सब बेहद परेशान हैं, उदास हैं!
हां, इस अंधी सुरंग के उस पार है
झीनी झीनी सी ज्योति, रोशनी!
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी विश्वास बढ़ाती है सुशील जी।
हटाएंवाह, अच्छी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद विवेक जी।
हटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद हरीश जी
हटाएंप्रेम का यह रूप बहुत सुंदर है, सत्यम - शिवम - सुंदरम की तरह !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मीना जी
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