मातृभाषा दिवस पर
अरुण चन्द्र रॉय की कविता - मातृभाषा
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मेरी मातृभाषा में
नहीं है
सॉरी, थैंक यू
धन्यवाद, आभार जैसे
शब्द।
मातृभाषा में बोलना
होता है जैसे
मां छाती से लिपट जाना
माटी में
लोट जाना
जब छूट रही है मिट्टी, मां
और मातृभाषा
हर बात के लिए
जताने लगा हूं आभार
कहने लगा हूं धन्यवाद
औपचारिक सा हो गया हूं।
- अरुण चन्द्र रॉय
आधुनिकता के चकाचौंध से
जवाब देंहटाएंफीकी पड़ी, सकुचाई-सी
पड़ी है किसी कोने में
मातृभाषा अजनबियों के बीच
बेज़ुबान हो जाती है।
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २३ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सत्य का उद्घोष करती मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंवाह
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