मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009

टूटे हुए खिलौने

हर रोज़
डर जाता हूँ
जब बेटी रोती है
अपने खिलौनों के टूट जाने पर
और में उसे चुप नही कराता
जानता हूँ
कल होकर टूटेंगे
खिलौनों से भी ज्यादा कुछ ।

स्कूल में
बस्त्ते के नीचे दब कर बचपन
मेरे अम्बिशन को पाने के लिए
छलांग लगते हुए उसके 'स्व' की टांग
और कई बार चुभेंगे उसकी आंखों में
उसके अपने ही सपने

बस इतनी सी दुआ करता हूँ
बच्चों के लिए
वे टूटें
मगर बिखरें नही !

15 टिप्‍पणियां:

  1. जानता हूँ
    कल होकर टूटेंगे
    खिलौनों से भी ज्यादा कुछ ।
    ..........
    jivan ka kadwa sach.....wo na bikhren yahi dua hai hamari bhi

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  2. बढ़िया रचना आने वाला कल सुखमय हो यही दुआ करेंगे हम तो ..बेहतरीन रचना

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  3. जानता हूँ
    कल होकर टूटेंगे
    खिलौनों से भी ज्यादा कुछ ।
    jeevan ki katu sachchayi..

    बस इतनी सी दुआ करता हूँ
    बच्चों के लिए
    वे टूटें
    मगर बिखरें नही !
    aapki is dua men main bhi saath hun....sundar abhivyakti

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  4. aapne mere man ko rula diya ............. kaash bachpan gum na hi hamare bachcho ka ............. hats off of you

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  5. बस इतनी सी दुआ करता हूँ
    बच्चों के लिए
    वे टूटें
    मगर बिखरें नही !

    Behtareen...

    www.poeticprakash.com

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  6. भाव पूर्ण रचना ...दिल से निकली आवाज की तरह बधाई

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  7. बस इतनी सी दुआ करता हूँ
    बच्चों के लिए
    वे टूटें
    मगर बिखरें नही …………हमेशा की तरह सुन्दर भाव्।

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  8. बस इतनी सी दुआ करता हूँ
    बच्चों के लिए
    वे टूटें
    मगर बिखरें नही !
    ..bahut khoob!

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  9. भावपूर्ण सुंदर रचना बेहतरीन पोस्ट .....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
    चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
    छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
    अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,


    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  10. "कल होकर टूटेंगे"

    ये तीन शब्द जान हैं इस कविता की - बहुत खूब अरुण भाई

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  11. बेहतरीन दुआ...बच्चों के लिए...

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  12. बेहतरीन दुआ...बच्चों के लिए...

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