मंगलवार, 19 जनवरी 2010

कुछ छोटी कवितायें


खो कर
पाने कि तमन्ना लिए
खुश हैं हम
रेत भर कर मुट्ठी में
सपने संजो रहे !

रेत घडी
जिसने भी बनाई हो
वैज्ञानिक से ज्यादा
आशिक रहा होगा !


मोती नहीं चाहिए
हमे
ओस की वो बूंदे ही दे दो
हर सुबह
जिंदगी के लिए !


दिल करता है
तुम्हारे किचन के डिब्बओं पर लिख दूं
'चीनी... तुमसे मीठी नहीं लेकिन '
'चाय... तुमसे ताजी नहीं लेकिन'
'हल्दी... तुमसे पीली नहीं लेकिन'
'मिर्च... तुमसे तीखी नहीं लेकिन'
और भी बहुत कुछ
कि तुम बस मुस्कुरा कर रह जाओ...
उस मुस्कराहट से ज्यादा
कुछ हो सकता है क्या॥

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