अचानक लगा
फिसल गया हूँ
बाबूजी के कन्धों से
अचानक लगा
छूट गई हैं उँगलियाँ
बाबूजी के हाथों से
अचानक लगा
आज दरवाजे पर
कौन खड़ा होगा
लम्बी सी बेंत लिए
देर से घर लौटने पर
आज
मैं सुबह
समय पर जाग गया
बाहर गली में देर तक नहीं खेला
तितलियों के पंख नहीं तोड़े
बस बाबूजी के खामोश होने के एहसास से !
आँखें नम हो आयीं इस मासूम ख्याल पे
जवाब देंहटाएंअप्रत्याशित और आपने खबर भी नहीं की। अगर यह सच है तो ....। विश्वास नहीं हो रहा है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर और मार्मिक अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंआँखें नम हो गयीं!
जवाब देंहटाएंएक बेहद मार्मिक चित्रण्।
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल और दृढ ...बहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंभाव-भीने अहसास ....
जवाब देंहटाएंखुश रहें !
बहुत से लोग बाबूजी के खामोश होने का इंतज़ार करते हैं ..बहुत मार्मिक चित्रण .
जवाब देंहटाएंअश्रुपूरित आँखों से लिख रही हूँ ..आपकी रचना में आपके बाबूजी के लिए आपका प्यार ओत प्रोत है ...
जवाब देंहटाएंसादर
kalamdaan.blogspot.com
बहुत गहरी संवेदना लिए कविता।
जवाब देंहटाएंबाबुजी के होने का एहसास।