गुरुवार, 5 मई 2011

सुनते रहे हो न महादेव भाई !


वह जो
तुम्हारी पान की दुकान  है
जिसके पान की खुशबू
जाती है
दूसरे मोहल्ले तक
गुलकंद, जाफरानी, तुलसी, बाबा
अलग अलग नंबरों के पान में
ये तो सब डालते हैं
लेकिन तुम्हारे हाथों
कत्थे और चूने की संतुलित मात्रा
भुनी हुई, कतरी हुई, भिगोई हुई सुपारियाँ
पान को बांधने की कला
कहाँ है सबके पास

फिर भी
निश्चिंत मत रहना
देर  रात  को  लौटने के बाद
अपनी तीन टांगों की खाट पर
अपने कत्थे के रंग से
रंगी उँगलियों को
पत्नी के केशों में फेरते हुए
या फिर
सोये हुए बच्चो के चेहरे को
सरौता चलाने से  हो गईं
खुरदुरी हथेलियों में भरते हुए
सावधान रहना कि
योजनायें बन रही हैं
करने को तुम्हे बेदखल
इस रोज़गार से

बदलती विश्व व्यवस्था में
तुम्हारी यानी तुम्हारे भाई बंधु की
इस दुकान  पर
जो है हर नुक्कड़ पर
गली मोहल्ले से लेकर महानगरों के
हर चौराहे पर
झुग्गियों से लेकर
रेलवे स्टेशनों, बस अड्डो पर
देश के सभी बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों के आगे
चुनौती देती सिमटते विश्व को
इसकी संख्या से चकित हैं
रिटेल के दिगज्ज़ भी

बन रही हैं  नीतियां
कैसे सजाया जाएगा इन्हें
सब दुकानें होंगी
बिल्कुल एक सी
एक ही रंग
एक ही उत्पाद
अख़बार में निकलेंगे
आकर्षक विज्ञापन
ली जाएगी सिक्योरिटी
दिए जायेंगे
एक ही तरह के उत्पाद तुम्हे
अगली नुक्कड़ पर बैठे
चाचा को भी
बने बनाए रेडीमेड 

हो सकता है कि 
तुम्हारे पास तब न हो 
सिक्योरिटी भरने तक की रकम

कहा जायेगा तुमसे
सुविधा ही होगी तुम्हे
बहुराष्ट्रीय हो जाओगे तुम भी
देखोगे तुम स्वप्न भी कि
तुम्हे कुछ भी तो नहीं करना होगा
नहीं रंगेगी तुम्हारी उंगलियाँ
नहीं खुरदुरी होगी तुम्हारी हथेलियाँ
अलग बात है कि
तुम कड़ी बन जाओगे
दुनिया के सफलतम व्यापारिक माडल की
जिसमें मिट जानी है
तुम्हारी पहचान
लग जानी  है
तुम्हारे हुनर पर
फिर एक बार
गुलामी की मुहर.

और पूछोगे कि मैं कौन ?
तो बताता जाऊं कि 
मैं हूँ तुम्हारा 
रामचरित्तर चाय वाला 
बेच रहा हूँ 
इन दिनों 
ब्रांडेड डिसपेंस्ड चाय .

सुन रहे हो न महादेव भाई !

28 टिप्‍पणियां:

  1. वक्त के साथ बदलाव आते है और जो उन्हे स्वीकार कर लेता है वो ही जी पाता है वरना ज़िन्दगी की रेस मे पिछड्ने लगता है……………अगर रामचरित्तर बदल सकता है तो महादेव क्यों नही…………नयापन हमेशा गलत नही होता …………आधुनिकता ने विकास के द्वार खोले हैं …………एक पहचान अगर मिटी है तो नयी भी बनी है येहमारे पर है कि हम उसे कैसे प्रस्तुत करते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  2. हो सकता है महादेव भाई का स्टेटस तो बढ़ जाएगा परन्तु महादेव की महादेवियत.... "जहां दरिया समंदर से मिला दरिया नहीं रहता......... !"

    जवाब देंहटाएं
  3. अरुण जी इस कविता पर पहली प्रतिक्रिया मेरे मन में इस रूप में आई कि जब पटना में होता था, और विष्णुदेव यादव के लॉज में (महेन्द्रू में) पढ़ाई करते-करते रात के ग्यारह बारह बजने को होते थे तो हम और हमारे मित्र अजय को पान की तलब लगती थी, तब तक महेन्द्रू के पान की दूकान बन्द हो जाया करती थी। हम वहां से गांधी मैदान आते थे, मौर्या के सामने के पानवाले के यहां पान खाते थे। और जी भर कर थूकते थे, उन दिनों के पटना के हिसाब से पांचतारा होटल की ओर मुंह करके।

    जवाब देंहटाएं
  4. अरुण जी, उन दिनों का मैं नहीं बदला, भले ओहदा बाध्य करता हो, तो महादेव क्या बदलेगा। १२ को जा रहा हूं पटना, अभी करण जो लिख कर गया है, ‘हो सकता है महादेव भाई का स्टेटस तो बढ़ जाएगा’ उसे भी कहीं शंका है कि महादेव बदल जाएगा। पर मुझे विश्वास है कि अब भी महादेव वहीं होगा और कहेगा ये लीजिए पतैली बाला पान और थूकिए खाकर .... हां, मुंह उम्हरे रखिएगा ....!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुराष्ट्रीय करण और शहरीकरण की चक्की में पिसता गरीब इंसान
    बहुत प्रभावशाली ढंग से व्यथा उकेरी है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  6. तुम कड़ी बन जाओगे
    दुनिया के सफलतम व्यापारिक माडल की
    जिसमें मिट जानी है
    तुम्हारी पहचान
    लग जानी है
    तुम्हारे हुनर पर
    फिर एक बार
    गुलामी की मुहर.

    ऐसे में महादेव की पहचान खोने का ख़तरा तो रहेगा ही.परन्तु हुनरमंद अपनी पहचान हर हाल में बना ही लेता है.महादेव भी बना ही लेगा.

    जवाब देंहटाएं
  7. अरुण जी,
    फिर भी
    निश्चिंत मत रहना
    देर रात को लौटने के बाद
    अपनी तीन टांगों की खाट पर
    अपने कत्थे के रंग से
    रंगी उँगलियों को
    पत्नी के केशों में फेरते हुए
    भावों को बहुत ही खूबसूरती से उकेरा है | बहुत भावपूर्ण उत्कृष्ट रचना..

    जवाब देंहटाएं
  8. एक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
    यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

    जवाब देंहटाएं
  9. तुम कड़ी बन जाओगे
    दुनिया के सफलतम व्यापारिक माडल की
    जिसमें मिट जानी है
    तुम्हारी पहचान
    लग जानी है
    तुम्हारे हुनर पर
    फिर एक बार
    गुलामी की मुहर.

    बहुराष्ट्रीयकरण पर एक सटीक चिंतन..लेकिन बदलाव को हम अपने अनुकूल भी तो ढाल सकते हैं और हो सकता है कि इस बदलाव के साथ चलने से महादेव अपनी एक नयी बेहतर पहचान बना पाए. एक नयी पहचान बनाने के लिये पहली पहचान को खोना ही होता है.

    जवाब देंहटाएं
  10. अलग बात है कि
    तुम कड़ी बन जाओगे
    दुनिया के सफलतम व्यापारिक माडल की
    जिसमें मिट जानी है
    तुम्हारी पहचान
    लग जानी है
    तुम्हारे हुनर पर
    फिर एक बार
    गुलामी की मुहर.
    Baat sahee bhee hai aur daraawnee bhee!

    जवाब देंहटाएं
  11. गुलज़ार साहब ने किताबों के बारे में कहा था "जुबां से जायका जाता नहीं सफहे पलटने का"... कुछ ऐसा ही है जायका महादेव के पान का. नहीं खाता मैं पान, कभी कभी शौकिया खा लिया बस .. लेकिन आज भी किसी भोज के बाद "महादेव" के हाथों पान के लिए इंतज़ार करते अपनी माता जी और पत्नी को देखता हूँ तो लगता है छप्पन भोग के स्वाद को लक्ष्य प्राप्त हो गया..
    अरुण जी, आपके लिए कल जो शब्द मैंने कहे थे, यह कविता मेरे कहे शब्दों की लाज रखती है!! आभार आपका!!!

    जवाब देंहटाएं
  12. सिलसिला तो यही चल रहा है.

    जवाब देंहटाएं
  13. bahurashtriykarn hamse hamari soundhi khushboo chhenane me laga hai...

    जवाब देंहटाएं
  14. अहा, जमीन से जुड़े चरित्रों के बारे में कविता।

    जवाब देंहटाएं
  15. और पूछोगे कि मैं कौन ?
    तो बताता जाऊं कि
    मैं हूँ तुम्हारा
    रामचरित्तर चाय वाला
    बेच रहा हूँ
    इन दिनों
    ब्रांडेड डिसपेंस्ड चाय .


    सुन रहे हो न महादेव भाई !

    हाँ हाँ सुन रहा हूँ अरुण भाई ,ब्लॉगिंग में भी एक दिन ऐसा ही
    होने जा रहा है.जब प्रायोजित होंगें सभी ब्लॉग,और फिर जब जो जो
    कहा जायेगा वही लिखना पड़ेगा अरुण भाई.

    मेरे ब्लॉग पर आयें,नई पोस्ट जारी की है.
    मै तुम्हारा 'मनसा वाचा कर्मणा' वाला.

    जवाब देंहटाएं
  16. बदलती विश्व व्यवस्था में
    तुम्हारी यानी तुम्हारे भाई बंधु की
    इस दुकान पर
    जो है हर नुक्कड़ पर
    गली मोहल्ले से लेकर महानगरों के
    हर चौराहे पर
    झुग्गियों से लेकर
    रेलवे स्टेशनों, बस अड्डो पर
    देश के सभी बड़े व्यापारिक प्रतिष्ठानों के आगे
    चुनौती देती सिमटते विश्व को
    इसकी संख्या से चकित हैं
    रिटेल के दिगज्ज़ भी
    ... kya drishy dikhaya hai

    जवाब देंहटाएं
  17. बहुराष्ट्रीयकरण पर सटीक चिंता व्यक्त की है...
    विकास...नए प्रयोग अपनी जगह हैं...इन पुराने हुनर को सुरक्षित रखने के उपाय करने चाहिए..
    महादेव की स्थिति का बहुत ही मार्मिक चित्रण किया है....खासकर उन कत्थे से रंगी उँगलियों और खुरदरी हथेलियों का जिक्र

    जवाब देंहटाएं
  18. KAVITA NISCHIT ROOP SE UDVELIT KARTI HAI.EK-AADH SAADHARANIKARAN AVOIDABLE THA.

    जवाब देंहटाएं
  19. अरुण जी,

    बहुत सुन्दर.......कुछ नया....सार्थक विषय पर खूबसूरती से शब्दों का प्रयोग किया है.....हैट्स ऑफ

    जवाब देंहटाएं
  20. सुन रहे हैं अरुण भाई .बहुत दिनों से सुनते आये हैं इन बहुराष्ट्रीय कम्पनीयों की साजिश
    यह साजिश कामयाब नहीं होगी .भूख आदमी को बेबस नहीं खूखार भी बनाती है

    जवाब देंहटाएं
  21. aap bahurashtriyakaran ke dhur virodhi ho, ye to mujhe bahut pahle se pata tha...aapne mujhe samjhaya bhi tha...par mujhe ye nahi pata tha ki paan ki dukan bhi mall culture ka hiss h o sakti hai...hamare mahadev ki paan dukan band ho sakti hai...
    bahut khub!!
    mujhe bahut khushi hoti hai...jab aapke post ko padhta hoon...
    yaad hai na kaise aapne mujhe kavita gadhna seekhaya..:)

    जवाब देंहटाएं
  22. सार्थक विषय पर खूबसूरती से शब्दों का प्रयोग किया है|धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  23. तुम्हे कुछ भी तो नहीं करना होगा
    नहीं रंगेगी तुम्हारी उंगलियाँ
    नहीं खुरदुरी होगी तुम्हारी हथेलियाँ
    अलग बात है कि
    तुम कड़ी बन जाओगे
    दुनिया के सफलतम व्यापारिक माडल की
    जिसमें मिट जानी है
    तुम्हारी पहचान
    लग जानी है
    तुम्हारे हुनर पर
    फिर एक बार
    गुलामी की मुहर.
    अनजाने मी और कुछ जान बूझकर बाजारवाद के चक्रव्यूह मे फंसती ही जा रहे हैं। अच्छी रचना। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं
  24. पर भाई जी मुझे ऐसा क्यों लगता है की आपके रहते हुए कोई महादेव का बाल भी बनाका नहीं कर सकता.....
    पता नहीं यह मेरा आपके प्रति मोह है या...विश्वाश मगर लगता है किआप हो न अभी...कुछ तो निश्चिन्त हुआ ही जा सकता है....
    खैर क्या आप बनारस के हैं भाई जी....?..क्यों कि जो संक्र्तिक झलक आपके विचारों में है....वह मुझे न जाने क्यों कई बार गुदौलिया कि चोक से आती हुई नज़र आती है...!

    जवाब देंहटाएं
  25. आज भी पटना में कुछ महादेव हैं जिनका जिक्र श्री मनोज जी ने किया है..विषय पर आये तो ..बहुत अच्छा लिखते है...एक निर्झर प्रवाह सी...बहा ले जाती है..बहुत अच्छी लगी रचना..आभार..

    जवाब देंहटाएं
  26. सार्थक सटीक....बहुत बहुत प्रभावशाली !!!

    ग्लोबलाइजेशन और बड़े औद्योगिक घरानों का घरेलु उपभोक्ता बाज़ार में उत्कृष्ट सेवा के नाम पर इतनी चतुरता से छोटे व्यवसाय और व्यवसायियों का समूल नाश हो रहा है कि किसीको पता भी नहीं चल पा रहा कि कैसे पैरों तले की जमीन खींच ली जा रही है उनकी...

    अत्यंत गंभीर और चिंताजनक स्थिति है यह...

    जवाब देंहटाएं
  27. जमीन से जुड़ी हुई एक झलक

    जवाब देंहटाएं