माँ को जब
नहीं आता है
मोबाईल पर सन्देश भेजना
बड़ी खीज आती होगी आपको
आप तब अपना सिर
पीट लेते होंगे
जब उसे मोबाइल खोल कर
सन्देश पढना भी नहीं आता होगा
आपने जब दिया होगा
नया मोबाइल फ़ोन
फ़ोन करना
सन्देश पढना/भेजना
फोटो खीचना
रेडियो बजाना
वीडियो काल करना
और आप निराश हो गए होंगे
जब वह बिना किसी रूचि के
रख दी होगी मोबाइल
एक ओर
आप लौट आये होंगे
गाँव से उल्टे पाँव
उसी हताशा में, निराशा में
समझा दिया होगा
आस पड़ोस को
माँ के बारे में सबकुछ
उसकी बीमारी, उसका डाक्टर
चश्मे का नंबर
अलग से रख दिया होगा एक और चश्मा भी
छह महीने की दवाई की पोटली के साथ
दे दिया होगा
अपना नंबर भी
प्रतीक्षित आकस्मिक स्थिति के लिए
लौटते हुए आपने कई बार
'सॉरी' का सन्देश भी भेजा होगा
लेकिन नहीं आया होगा जवाब
बहुत रोये होंगे आप
उसकी कांपती हाथो से लिखी
चिट्ठी को याद करके
लगता होगा कि बदल गई है
माँ भी
आश्चर्य होता होगा न कि
जो लिख सकती हैं इस उम्र में भी
करीब सात फांट साइज़ के महीन अक्षरों में चिट्ठी
उसे कैसे नहीं चला सकती है
मोबाइल
आप सोच रहे होंगे
इनबाक्स में पड़े होंगे
आपके सन्देश
बिना माँ के बच्चों जैसे
और माँ के बारे में
सोचते सोचते आप भूल गए होंगे कि
चलना उसी ने सिखाया था
पकड़ कर नन्ही उंगलियाँ
पहली बार वही थी भागी
साइकिल के पीछे
दो और दो चार होते हैं
उँगलियों को दिखा कर
उसी ने सिखाया था
जो अब भी याद है आपको
शायद
जबसे आपने सीख लिया कि
दो और दो केवल चार नहीं होते
माँ भूल गई
सब जोड़, घटा, गुणा, भाग
और कर दी घोषणा
नहीं आती है मां को
मोबाइल चलानी .
नहीं आता है
मोबाईल पर सन्देश भेजना
बड़ी खीज आती होगी आपको
आप तब अपना सिर
पीट लेते होंगे
जब उसे मोबाइल खोल कर
सन्देश पढना भी नहीं आता होगा
आपने जब दिया होगा
नया मोबाइल फ़ोन
एक और जरुरत समझकर
सिखाया होगा जतन सेफ़ोन करना
सन्देश पढना/भेजना
फोटो खीचना
रेडियो बजाना
वीडियो काल करना
और आप निराश हो गए होंगे
जब वह बिना किसी रूचि के
रख दी होगी मोबाइल
एक ओर
आप लौट आये होंगे
गाँव से उल्टे पाँव
उसी हताशा में, निराशा में
समझा दिया होगा
आस पड़ोस को
माँ के बारे में सबकुछ
उसकी बीमारी, उसका डाक्टर
चश्मे का नंबर
अलग से रख दिया होगा एक और चश्मा भी
छह महीने की दवाई की पोटली के साथ
दे दिया होगा
अपना नंबर भी
प्रतीक्षित आकस्मिक स्थिति के लिए
लौटते हुए आपने कई बार
'सॉरी' का सन्देश भी भेजा होगा
लेकिन नहीं आया होगा जवाब
बहुत रोये होंगे आप
उसकी कांपती हाथो से लिखी
चिट्ठी को याद करके
लगता होगा कि बदल गई है
माँ भी
आश्चर्य होता होगा न कि
जो लिख सकती हैं इस उम्र में भी
करीब सात फांट साइज़ के महीन अक्षरों में चिट्ठी
उसे कैसे नहीं चला सकती है
मोबाइल
आप सोच रहे होंगे
इनबाक्स में पड़े होंगे
आपके सन्देश
बिना माँ के बच्चों जैसे
और माँ के बारे में
सोचते सोचते आप भूल गए होंगे कि
चलना उसी ने सिखाया था
पकड़ कर नन्ही उंगलियाँ
पहली बार वही थी भागी
साइकिल के पीछे
दो और दो चार होते हैं
उँगलियों को दिखा कर
उसी ने सिखाया था
जो अब भी याद है आपको
शायद
जबसे आपने सीख लिया कि
दो और दो केवल चार नहीं होते
माँ भूल गई
सब जोड़, घटा, गुणा, भाग
और कर दी घोषणा
नहीं आती है मां को
मोबाइल चलानी .
बहुत संवेदनशील रचना ... लेकिन माँ है न ..तो कैसे भी हो सीख जायेगी अपने आप .. भले ही थोड़ा वक्त लगे ... बच्चों की चिन्ता सब सिखा देती है माँ को ..
जवाब देंहटाएंयहा तो अन्तर है पीढी के अन्तराल में!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्दों के साथ बेहतरीन अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंये बताइए अरुण जी कि यह पुत्र कितना व्यस्त और कितना टेकी है जो माँ को फोन करने के बजाये मेसज करता है.
जवाब देंहटाएंसौरभ .
कई बार बहुत भावुक कर देती हैं आपकी पोस्ट........बहुत ही खूबसूरत|
जवाब देंहटाएंarun jee,
जवाब देंहटाएंhan har maan ko nahin aata meri maan ko bhi nahin aata bas quick dial men sab number feed kar diye hain aur kah diya hai ki hara batan daba kar thodi der ghanti sunana aur phir lal daba kar kat dena jisako chahogi vahi baat kar lega. yahi chara hai, aankh kee kamajor hoti roshni aur das das ank yaad rakhana sambhav nahin hota. apaki kavita shayad har maan kee kahani kahati hai.
marmsparshi........
जवाब देंहटाएंबच्चे समझ नहीं पाते...कि कैसे माँ ये सब जल्दी से नहीं सीख पाती...
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी और यथार्थपरक कविता.
भावुक करने वाली पोस्ट !!
जवाब देंहटाएंबहुत ही ह्र्दयस्पर्शी रचना ।
जवाब देंहटाएंमाँ का मोबाइल , सुँदर भाव प्रवण कविता का उदगम बना . आभार .
जवाब देंहटाएंbahut samvedansheel rachna....jante hain vo guru maa hain jo jaankar nahi seekhna chaahti mobile chalana kyuki vo janti hai vo uske aur uske bete ke beech duriyan kheechne wali rekha hai....to kaise seekh jaye vo mobile chalana?
जवाब देंहटाएंअब मोबाईल प्रतिक बन गया माँ की मज़बूरी का .....बहुत संवेदनशील रचना ....जीवन के अनुभूत सत्य को उद्घाटित करती हुई .....!
जवाब देंहटाएंउसे तो कोई फोन मिलाकर बेटे की आवाज सुना दे।
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna, aabhar.
जवाब देंहटाएंबड़ी मुश्किल से अपनी निरक्षर मां को रिसिव करना सिखा पाया हूं। आब पापा भी नहीं रहे। तो सिखाना तो था ही, क्योंकि वो गांव में अकेली रहती है। बस महानगरों में रहना नहीं सिखा पाया। अब क्या सिखेगी ... वो कहती है।
जवाब देंहटाएंbahut sunder , seekh hi jaayengi ek din
जवाब देंहटाएंमाँ सिखने में समय लेती है या कितना जानती है , सब समझते हैं आप ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति !
... maa jitna seekh le , bahut hai- hum hi kitna jante hain
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना...संगीताजी ने ठीक ही कहा
जवाब देंहटाएंलेकिन माँ है न ..तो कैसे भी हो सीख जायेगी अपने आप .. भले ही थोड़ा वक्त लगे ... बच्चों की चिन्ता सब सिखा देती है माँ को ..
bahut hi sambedansheel rachanaa,dil ko choo gai.sach kaha aapne jo maa tab aapki bhasha samajh leti thi.jab aapko thik sr bolanaa bhi nahi aata tha,usi maa ko hum aaj bolate hain ki maa aapko kuch nahi aataa.mobail chalaanaa bhi nahi aataa.bahut hi bhavuk kar dene wali rachanaa.badhaai aapko.
जवाब देंहटाएंभावुक कर दिया इस रचना ने , इंसान पहले माँ का प्रेम तो समझ ले ...
जवाब देंहटाएंअरुण जी!
जवाब देंहटाएंआज बस मौन.. बस ऐसा लगा कि शब्द-शब्द मेरी माँ का चेहरा बनकर मेरे सामने खड़े हो गए हैं!!
अप्रतिम कविता बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता. माँ और माँ की ममता के वीच में मोबाइल नहीं आ सकता. सचमुच में भावुक कर दिया.
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील रचना...अरुण जी
जवाब देंहटाएंएक अति उम्दा रचना.....धन्यवाद
वाह,फिर एक नए विषय पर सुन्दर - सी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना..आपका विषयों का चयन हमेशा अद्भुत है..
जवाब देंहटाएं"शायद
जवाब देंहटाएंजबसे आपने सीख लिया कि
दो और दो केवल चार नहीं होते
माँ भूल गई
सब जोड़, घटा, गुणा, भाग
और कर दी घोषणा
नहीं आता है माँ को
मोबाइल चलाना"
उम्दा,मर्मस्पर्शी रचना...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंगहरी संवेदनाएं समेटे ... कभी कभी अपने ऊपर शर्म आती है ...कितने स्वार्थी हो गए हैं हम ...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम , आपकी ये रचना आपके नाम सहित अपने फसबूक पर शेयर की है अरुणजी ! मेरी माँ एक बार देल्ही मैं एक माल के एस्क्केलेटर पर गिर गई थी मेरे अंदर उस समय जो चल रहा था ये कविता वो बयां करती है !
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