कंक्रीट की अट्टालिकाओं में
उगे काँटों से छलनी
सुबह की धूप
लौट जाती है
दोपहर में बंद दरवाज़े से
बजा कर घंटी
कोरियर बॉय की तरह
शाम को बंद खिडकियों से
झाँकने के जुर्म में
जो चढ़ा दिए गए हैं मोटे परदे
उनसे टकरा कर
चोटिल होती धूप
चिडचिडी रहती है
जबकि दूर मेरे गाँव में
लौट जाती है
दोपहर में बंद दरवाज़े से
बजा कर घंटी
कोरियर बॉय की तरह
शाम को बंद खिडकियों से
झाँकने के जुर्म में
जो चढ़ा दिए गए हैं मोटे परदे
उनसे टकरा कर
चोटिल होती धूप
चिडचिडी रहती है
जबकि दूर मेरे गाँव में
सुबह सुबह
रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
चूम जाती है धूप
माँ का माथा
पहली फुर्सत में
पश्चिम के ओसारे पर
खेलती है पूजास्थल से हटाये गए
बासी फूलों के साथ
माँ के नहा कर लौटने के बाद
रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
चूम जाती है धूप
माँ का माथा
पहली फुर्सत में
पश्चिम के ओसारे पर
खेलती है पूजास्थल से हटाये गए
बासी फूलों के साथ
माँ के नहा कर लौटने के बाद
धूप आँगन के इस ओसारे से
उस ओसारे पर बैठती है
बतियाती है फुर्सत से
बांटती है नई पुरानी बातें
कई बार माँ खोल देती है
यादों की संदूकची
धूप के सामने ही
और ताज़ी हो जाती हैं
यादें, मेरे पहले कपडे,
ननिहाल से मिली कटोरी चम्मच
जो दिए थे नानी ने मुंडन पर
माँ रोती है नानी को करके याद
कई बार माँ खोल देती है
यादों की संदूकची
धूप के सामने ही
और ताज़ी हो जाती हैं
यादें, मेरे पहले कपडे,
ननिहाल से मिली कटोरी चम्मच
जो दिए थे नानी ने मुंडन पर
माँ रोती है नानी को करके याद
गीली हो जाती है दोपहर
पिघल जाती है धूप भी
बहुत बातें करती है
मेरे गाँव की धूप
बहुत बातें करती है
जवाब देंहटाएंमेरे गाँव की धूप
वाह ...बहुत ही भावमय करते शब्दों का संगम ।
मन गीला कर गयी,ये बातें करती धूप...
जवाब देंहटाएंसच में हमने अपने सारे रिश्ते प्रकृति के साथ तोड़ दिए है गुनगुनी धूप ,रात की ठंडी हवा ,आसमान के तारे सब खफा होंगे ... हमने अपने आप को A .क में कैद जो कर दिया है
जवाब देंहटाएंधूप बातें करती हैं
जवाब देंहटाएंकंक्रीट की अट्टालिकाओं में
उगे काँटों से छलनी
सुबह की धूप
लौट जाती है
दोपहर में बंद दरवाज़े से
बजा कर घंटी
कोरियर बॉय की तरह
शाम को बंद खिडकियों से
झाँकने के जुर्म में
जो चढ़ा दिए गए हैं मोटे परदे
उनसे टकरा कर
चोटिल होती धूप
चिडचिडी रहती है
बहुत सुन्दर कविता भाई अरुण जी बधाई और शुबकामनाएं
धूप बातें करती है
जवाब देंहटाएंबातों बातों में
यादों की सीलन ख़त्म हो जाती है
कुछ और से के लिए सुरक्षित हो जाती है !
.... कभी चौखट , कभी आँगन, कभी छत ....
मुट्ठी भर धूप - कमाल कर जाती है
बहुत अच्छी कविता,बधाई!
जवाब देंहटाएंयूँ धूप से बतियाना कमाल कर गया.
जवाब देंहटाएंकंक्रीट के जंगल में किसी किसी घर में तो धूप दस्तक भी नहीं देती ... धूप की बातें मन भिगो गयी
जवाब देंहटाएंआज तो गांव और शहर दोंनों ही जगहों की पूरी धूप समेट ली है आपने अपनी कविता में. एक अच्छी गुनगुनी सी कविता
जवाब देंहटाएंजबकि दूर मेरे गाँव में
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह
रसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
चूम जाती है धूप
..............हर लफ्ज़ में गहराई ... वाह !! क्या बात है ..अभी चार दिन पहले ही गावँ से आया हूँ ऐसा नजारा रोज़ देखता था
कमाल की रचना है अरुण जी ... संवेदनाओं का ज्वार उमड़ आता है आपकी रचनाएं पढ़ के ...
जवाब देंहटाएंआपसे बात करना भुत ही अच्छा लगा ... कभी फुर्सत में मिलने की कामना है ...
भावमय करते शब्दों का संगम ।
जवाब देंहटाएंमाँ , नानी धूप और बचपन की यादें...भावुक कर दिया।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
जवाब देंहटाएंमेरी बधाई स्वीकार करें ||
यह मेरी 10 वी टिप्पणी ||
आभार
जो यह अवसर मिला ||
उफ! कितना बात करती है यह धूप .. गाँव की धूप
जवाब देंहटाएंबेहतरीन .. गहराई और एहसास युक्त रचना
आज जवाब मिला मुझे एक सवाल का जो बचपन से सालता था मुझे... बिजेंदर की माय जादा के दोपहर में हमरे हाता में बैठकर धूप तापती थी और न जाने क्या-क्या बतियाते रहती थी... कोई पास नहीं... माँ समझाती थी कि वो बिजेंदर के स्वर्गीय बाबू से बतियाती है.. तो क्या सचमुच उस धूप के रथ पर सवार बिजेंदर के बाबू "अपनी विधवा" का हाल-चाल पूछने आता था... आपकी कविता ने जवाब दे दिया मेरे बचपन के अनुत्तरित प्रश्न का!!
जवाब देंहटाएंधूप की लुकाछिपी में व्यक्त उसकी अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन शब्द चित्र!
जवाब देंहटाएंसादर
बातें करती धूप मनभावन लगी!
जवाब देंहटाएंdhoop ka batiyana badhiya lagaa ...sundar .
जवाब देंहटाएंसचमुच! बहुत प्यारी लगी मेरे गाँव की धूप से मुलाक़ात....
जवाब देंहटाएंएक अत्यंत सुन्दर रचना के लिये सादर बधाई....
सादर...
बहुत सुंदर शब्द चित्र .
जवाब देंहटाएंगांव से बहुत सारी रोशनी बटोर लाए हैं। हर मन को यह धूप चाहिए। शहर में आकर यही धूप इतनी तीतर-बीतर क्यों हो जाती है?
जवाब देंहटाएंइस धूप के सहेज कर रख लें, बहुत भवपूरित कविता।
कई बार माँ खोल देती है
जवाब देंहटाएंयादों की संदूकची
धूप के सामने ही
और ताज़ी हो जाती हैं
यादें, मेरे पहले कपडे,
ननिहाल से मिली कटोरी चम्मच
जो दिए थे नानी ने मुंडन पर
माँ रोती है नानी को करके याद
गीली हो जाती है दोपहर
पिघल जाती है धूप भी
बहुत बातें करती है
मेरे गाँव की धूप..
बहुत ही सुन्दर मन भर आया... छोड़ आये हम बचपन की गलियां ..अबोध निंदिया ..माँ कि बिंदिया ...पिता का दुलार ..संगी साथियों कि पुकार ..अपने गाँव की गलियां....???
अरुण जी.........लाजवाब कर देते हैं आप..........बस इतना ही............हैट्स ऑफ .......कुछ अलग और कुछ नया देने के लिए |
जवाब देंहटाएंgaon ki dhoop abhi bhi apna bhola pan barkarar rakhe hue hai ..shahr ki dhoop ko aoupcharikata aur tahjeeb ke aavran me lapet kar chup kara diya gaya hai shayad..behtareen shabd rachna...
जवाब देंहटाएंहाँ अब तो मेरे हिस्से का धूप भी किसी ने चुरा लिया है इन ऊँची दीवारों के इर्द-गिर्द..
जवाब देंहटाएंअब कहाँ हो पाती है धूप से बातें? वो गाँव की धूप की यादों के लिए धन्यवाद..
ज़िंदगी के सरोकारों को धूप के माध्यम से बखूबी उकेरा है आपने
जवाब देंहटाएंआपकी तरफ से ऐसी कविताओं का इंतज़ार रहता है
बहुत बहुत बधाई
माँ रोती है नानी को करके याद
जवाब देंहटाएंगीली हो जाती है दोपहर
पिघल जाती है धूप भी
बहुत बातें करती है
मेरे गाँव की धूप
सच है .. अच्छी प्रस्तुति !!
गांव की धूप बातें करती है...
जवाब देंहटाएंबिल्कुल नई भावभूमि पर लिखी गई कविता।
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
इतना ही कहूँगा... शानदार...
जवाब देंहटाएंआपकी 'धूप' बातें करती हुई बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपकी पिछली पोस्टों का समय मिलने पर अवलोकन करता हूँ.
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
Sundar rachna. aapko tatha aapke pariwar ko deepawali ki hardik subhkamna.
जवाब देंहटाएंHappy & Prosperous Deepawali to you and your family.
जवाब देंहटाएंआपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । .मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । दीपावली की शुभकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंसुबह सुबह
जवाब देंहटाएंरसोईघर की टूटी खिड़की से झांक कर
चूम जाती है धूप
माँ का माथा kya baat hai.........
aapki poori kavita mahsoos kar pa rahi hoon,bahot sunder likhe hain.
बातें!
जवाब देंहटाएंढेर सारी प्यारी-प्यारी बातें करती है धूप इस कविता में। लगता है मेरी ही बातें करती हैं।
..बेहतरीन कविता।..आभार।