बुधवार, 25 अप्रैल 2012

सीधी रेखा और अपारदर्शी झिल्ली


एक रेखा है 
कुछ लोग
उसके नीचे हैं
कुछ लोग ऊपर
कुछ दायें
कुछ बाएं
रेखा सीधी है
इसके नाक कान, दिल सब हैं


रेखा मौजूद है
गाँव, घर देहात,
फैक्ट्री, मैदान,
नदी,  समुद्र,
पहाड़,  जंगल
हर जगह


वैसे रेखा तो
अदृश्य है
किन्तु रेखा के उस ओर रहने वालों को
इस ओर दिखाई नहीं देता
एक अपारदर्शी झिल्ली उभर आती है
दीवार की तरह
रेखा के ऊपर.
चढ़ जाती है
सोच पर , सरोकार पर
और मोटी हो जाती है
झिल्ली


झिल्ली  जो प्रारंभ में
थी रंगहीन गंधहीन
बाद में इसका रंग
कुछ हरा कुछ लाल
कुछ नीला तो कुछ नारंगी हो गया है
कुछ 'इज्म' जुड़ गए हैं
इस झिल्ली के साथ
जिसने  जकड लिया है 
 रेखा  के इस ओर उस ओर रहने वालों को


झिल्ली के बीच
होते रहते हैं  तरह तरह के संवाद
जबकि रेखाओ के बीच गहरी हो  जाती है
गहरी खाई


झिल्ली तय करती है
रेखाओं  की लम्बाई,  मोटाई, 
चौड़ाई और गहराई
इसके पास है
तेज़ तेज़ हथियार जिससे कतर देती है
रेखाओं पर उपजी  कोपलों को
रेखाओं को संज्ञा शून्य , विचारशून्य कर देती है

 रेखा सीधी है और झिल्ली अपारदर्शी .

21 टिप्‍पणियां:

  1. कितना गहन लिखा है .... एक बार फिर पढ़ना पड़ेगा ....

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  2. झिल्ली के बीच
    होते रहते हैं तरह तरह के संवाद
    जबकि रेखाओ के बीच गहरी हो जाती है
    गहरी खाई
    बहुत सही कहा ...आपने

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  3. एक अपारदर्शी झिल्ली उभर आती है
    दीवार की तरह
    रेखा के ऊपर.
    चढ़ जाती है
    सोच पर , सरोकार पर
    और मोटी हो जाती है
    झिल्ली
    वाह....
    बहुत बढ़िया..

    सादर.

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  4. अस्तित्वों के बीच एक काल्पनिक रेखा खींच दी है..

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  5. बहुत ही खूबसूरत गहन अभिव्यक्ति....हैट्स ऑफ इसके लिए ।

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  6. झिल्ली अमरबेल हो गयी और रेखा उसके काबू में एक अस्त्र जिसका मनचाहा इस्तेमाल होता है

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  7. बड़े सरल शब्दों में समीचीन और संवेदनशील तथ्य को संवेदित कर दिया है ,आवश्यकता है ,शंस्लेषण की ,विश्लेषण की ,इंसानों की बीच,रेखा व झिल्ली का वजूद कैसे ?

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  8. रेखा सीधी है और झिल्ली अपारदर्शी
    पर इस रेखा को किसने देखा है ... अदृश्य है, अमूर्त है, अबोध है .. पर है जरूर

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  9. सुविधा-भोगी छद्मता, भोगे रेखा-पार।

    वंचित भोगे *त्रिशुचता, अलग-थलग संसार ।।


    *दैहिक-दैविक भौतिक ताप ।

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  10. अरुण जी यह अरुण टाइप कविता नहीं, मुझे तो अज्ञेय-शमशेर टाइप लगी। कभी कभी ऐसा परिवर्तन भी भाता है। वह रेखा विभाजन नहीं विस्तृति की रेखा है। और खिंचते रहनी चाहिए।

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  11. हमारे व्यक्तित्व और अन्तर्मन के बीच खिंची रेखा और अपारदर्शीय झिल्ली के बीच का अन्तर्द्वन्द और विश्लेषण को बडी संजीदगी से उभारा है आपने।

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  12. अदृश्य पर सब कुछ बाँटती रेखाएं ...गहरी अभिव्यक्ति....

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  13. ज्यों ज्यों ज़िन्दगी आगे बढ़ती है
    रेखाओं के साथ पारदर्शी अपारदर्शी झिल्लियों के साथ खाइयां भी होती हैं
    गिरने का भय नट बनना सिखाता है

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    1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति |
      शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ||

      सादर

      charchamanch.blogspot.com

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  14. वाह भाई साहब आहलुवालिया का अर्थ शाश्त्र बुधुआ को समझा दिया .

    कृपया यहाँ भी पधारें -

    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
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  15. झिल्ली के बीच
    होते रहते हैं तरह तरह के संवाद
    जबकि रेखाओ के बीच गहरी हो जाती है
    गहरी खाई

    बहुत ही गहन अभिव्यक्ति

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  16. khyaal ... kisi philosopher kee tarah uthey aur vyvastha aur har kshetr me badti duriyon ka sangyavihinta ka khyaal is rekha aur apaardarshi jhilli kee tarah aaya ...umda

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  17. बहुत ही गूढ़ सत्य है..... और इतना गहन लेखन ...तीन बार पढ़ा तब जाकर इतना ही समझ पाया कि मनुष्य कितना आत्मकेन्द्रित हो गया है

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