शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

कलाई घडी


कलाई पर
बंधा है
समय
मारता  है
पीठ पर चाबुक
और दौड़ पड़ता हूँ मैं
घोड़े की तरह
आगे
और आगे
अंतहीन
घडी मुस्कुराती है
कलाई पर बंधी बंधी
मुझे हाँफते देख

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

बाँध के आगे के लोग



एक नदी
जो गुज़रती थी
खेतों के बीच से
बाँध बनने से
सूखी रहने लगी हैं

सुना है
बहुत पानी है
बाँध के उस तरफ
वहां से
बिजली बनेगी
राजधानी को जाएगी
वहां से लौटते हुए
सांसद, विधायक, मुखिया,
सरपंच के घर होते हुए
हमारे घर भी आएगी 

तब तक
या तो सूखे रहेंगे
या ढह / डूब जायेंगे
खेत, घर आँगन
बाँध के आगे के लोगों के 



सोमवार, 10 सितंबर 2012

घोगल-जरुरी है संघर्ष


जल 
 
जीवन है

जल में समा कर

मिट जाना है

एक दिन

लेकिन मिटने से पूर्व

जल की सतह पर

लिख जाना है

सत्य 

सत्य का आग्रह करते हुए


यह जल
वह नहीं
जो आता है टोटियों के रास्ते
या फिर 

बड़े बड़े जार में

पहुंचाया  जाता है 

घरों में हर सुबह

या फिर 

सीलबंद बोतलों में

चमचमाता रहता है

दुकानों में

यह जल वह है

जो बहता है

नदियों से होकर

खेत खलिहान को सीचते हुए 

गुजरता  है 

संस्कृतियाँ जिनके तट पर 
हैं पनपीं
घोगल में
लिखा गया है इतिहास

कि जल को
जीवन बनाये रखने के लिए
जरुरी है
सामूहिक संघर्ष 

बुधवार, 5 सितंबर 2012

द्रोण

शिक्षक दिवस पर प्रश्न उठती कुछ क्षणिकाएं 

१. 
मिलती है शिक्षा 
शक्ति से, 
भक्ति से नहीं 
आपने बहुत पहले 
स्थापित कर दिया था
आज भी है जारी 


२.
शिक्षा पर
सबका 
एक सा अधिकार 
 है नहीं, 
नहीं तो 
एकलव्य भी होता 
अर्जुन की कक्षा में 

३.
शिक्षा और 
शिक्षक का 
प्राथमिक उद्देश्य है
सत्ता का पोषण 
अन्यथा 
समता होता 
पहला पाठ