ए के ५७, छूरा, भाला
बरछी, कटार, तलवार और त्रिशूल से
जोते गए हैं खेत
और रोप दिए गए हैं
अलग अलग रंगों, नस्लों के बीज
ताकि फसलें लहलहायें
खेतों में लाल लाल
सींचे जा रहे हैं खेत
लालिमा लिए पानी से
जिस से आ रही है
मानुषी-बारूदी गंध
दिया जा रहा है खाद
जिसमे बेसमय हुए मुर्दा की
हड्डियों का चूरा है
मिला हुआ
और लहलहा रही हैं फसलें
खेतों में लाल-लाल
जिनकी रक्षा के लिए
बीचो बीच खड़े हैं
तरह तरह के लिबासो में
नरमुंड रूप में बिजूखा
ये खेत साधारण खेत नहीं हैं
इन्हें जाना जाता है
विधान सभा, विधान परिषद्,
लोकसभा, राज्य सभा के नामों से
सटीक !
जवाब देंहटाएंऔर हम सींच रहे हैं
खींच रहे हैं कुछ फोटो ।
हम नयी अर्हतायें गढ़ रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (14-09-2013) को "यशोदा मैया है मेरी हिँदी" (चर्चा मंचः अंक-1368)... पर भी होगा!
हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मज़बूत अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंबधाई आपको !
सुंदर सटीक सृजन ! बेहतरीन रचना,!!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : बिखरे स्वर.
अब इन खेतों की मिट्टी बदलनी होगी ..... बहुत सशक्त अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील ...
जवाब देंहटाएंशायद ये रोपने वालों का कसूर है ... जो इन संस्थाओं के लिए ऐसे लोगों का चयन करते हैं ...
बर्छे सीधे सत्ता तक पहुंचाते हैं...
जवाब देंहटाएंकविता में प्रयुक्त प्रतीक कथ्य को और अधिक सम्प्रेषणीय बना रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत ससक्त भाव और अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंये खेत साधारण खेत नहीं हैं
जवाब देंहटाएंइन्हें जाना जाता है
विधान सभा, विधान परिषद्,
लोकसभा, राज्य सभा के नामों से
Uf! Kaash ye sach na hota!
waah ...ये खेत साधारण खेत नहीं हैं
जवाब देंहटाएंइन्हें जाना जाता है
विधान सभा, विधान परिषद्,
लोकसभा, राज्य सभा के नामों से ...behtareen