बैलो के गर्दन से
मिट गए हैं
हल के निशान
देखिये
कितना सूखा हुआ है
आसमान !
बैलों के गर्दन पर
कम हो गया है
अनाज का बोझ
देखिये कैसे बदल गया है
मिजाज देश का
बैलो के गर्दन की घंटियाँ
बजती नहीं सुबह-शाम
देखिये कैसे बदल गए हैं
शहर और गाँव
बहुत खूब! बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ ख़तम हो रहा है ..
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबैल बदल गये हैं भाई जी :)
घंटियां तो शायद कितने पहले से ही बजनी बंद हो चुकी हैं ... गाँव ओर शहर के फर्क भी मिल गए हैं ... ओर देश का मिजाज तो पल पल बदल रहा है .. कहां जा के रुकने वाला है ...
जवाब देंहटाएंसमय की करवट है
जवाब देंहटाएंजो नहीं बदलेंगे मिट जाऐंगे :-(
वाकई में आपकी कविताओं में मैंने हमेशा एक ताजगी का अहसास किया है ..बदलते परिदृश्य को कितनी सफलता से चित्रित किया है आपने ..आपको हार्दिक बधाई के साथ
जवाब देंहटाएंसही मायने में बदले तो हम हैं..
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