(यह कविता २०१० में लिखी थी। अफगानिस्तान के बारे में जो छवि है , बस इतनी भर यह कविता थी। आज सुष्मिता बनर्जी की तालिबान द्वारा की गई हत्या इस कविता को पुष्ट करती है। लेखिका सुष्मिता के श्रधांजलि स्वरुप यह कविता फिर प्रस्तुत है। )
भूगोल की किताबों में
जरुर हो तुम एक देश
किन्तु वास्तव में
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
युद्ध के मैदान से
किन्तु वास्तव में
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
युद्ध के मैदान से
दशकों बीत गए
बन्दूक के साए में
सत्ता और शक्ति
परिवर्तन के साथ
दो ध्रुवीय विश्व के
एक ध्रुवीय होने के बाद भी
नहीं बदला
तुम्हारा प्रारब्ध
बन्दूक के साए में
सत्ता और शक्ति
परिवर्तन के साथ
दो ध्रुवीय विश्व के
एक ध्रुवीय होने के बाद भी
नहीं बदला
तुम्हारा प्रारब्ध
काबुल और हेरात की
सांस्कृतिक धरोहर के
खंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से
खंडित अवशेष पर खड़े
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
रक्तरंजित वर्तमान से
बामियान के
हिम आच्छादित पहाड़ों में
बसे मौन बुद्ध
जो मात्र प्रतीक रह गए हैं
खंडित अहिंसा के
अपनी धरती से
विस्थापित कर तुमने
गढ़ तो लिया एक नया सन्देश
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
मध्ययुगीन बर्बरता से
हिम आच्छादित पहाड़ों में
बसे मौन बुद्ध
जो मात्र प्रतीक रह गए हैं
खंडित अहिंसा के
अपनी धरती से
विस्थापित कर तुमने
गढ़ तो लिया एक नया सन्देश
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
मध्ययुगीन बर्बरता से
जाँची जाती हैं
आधुनिकतम हथियारों की
मारक क्षमता
तुम्हारी छाती पर
आपसी बैर भुला
दुनिया की शक्तियां एक हो
अपने-अपने सैनिको के
युद्ध कौशल का
देखते हैं सामूहिक प्रदर्शन
लाइव /जीवंत
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
सामरिक प्रतिस्पर्धा से
आधुनिकतम हथियारों की
मारक क्षमता
तुम्हारी छाती पर
आपसी बैर भुला
दुनिया की शक्तियां एक हो
अपने-अपने सैनिको के
युद्ध कौशल का
देखते हैं सामूहिक प्रदर्शन
लाइव /जीवंत
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
सामरिक प्रतिस्पर्धा से
खिड़कियाँ जहाँ
रहती हैं बंद सालों भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से
रहती हैं बंद सालों भर
रोशनी को इजाजत नहीं
मिटाने को अँधेरा
बच्चे नहीं देखते
उगते हुए सूरज को
तितलियों को
फूलों तक पहुँचने की
आज़ादी नहीं
हँसना भूल गयी हैं
जहाँ की लडकियां
तुम अफगानिस्तान
कुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से
सदियों से चल रहा
यह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
यह दोहरा युद्ध
एक -दुनिया से
और एक- स्वयं से
अफगानिस्तान
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
खोल दो खिड़कियाँ
तुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से
सूरज को दो अस्तित्व कि
मिटा सके पहले भीतर का अँधेरा
खोल दो खिड़कियाँ
तुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से
बेहद सशक्त और मर्मस्पर्शी रचना......
जवाब देंहटाएंसुष्मिता जी की हत्या एक बेहद दुखद और झकझोर देने वाली घटना है...
सादर
अनु
तुम अफगानिस्तान
जवाब देंहटाएंकुछ अधिक नहीं
फिल्मो/ डाक्युमेंटरी/ रक्षा अनुसन्धान के विषय भर से \
वाकई इन कट्टरताओं ने जीवन का मज़ाक बना कर रख दिया है ! अनूठी रचना , बधाई अरुण !
sarthak abhivyakti .
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक रचना.......
जवाब देंहटाएंसुष्मिताजी की हत्या अफगानिस्तान के बर्बरता का प्रतिक है .
बहुत ही सार्थक रचना.......
जवाब देंहटाएंसुष्मिताजी की हत्या अफगानिस्तान के बर्बरता का प्रतिक है .
बहुत ही सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंसुष्मिताजी की हत्या अफगानिस्तान के बर्बरता का प्रतिक है ....
भूगोल की किताबों भर में ही एक देश है जो उसकी स्थितियों परिस्थितियों का विशुद्ध आकलन!
जवाब देंहटाएंलेखिका सुष्मिता जी को श्रद्धांजलि!
सटीक और साथक अभिव्यकित जो वर्त्तमान सच को उजागर करती है
जवाब देंहटाएंlatest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !
खोल दो खिड़कियाँ
जवाब देंहटाएंतुम अफगानिस्तान
इस से पहले कि
मिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से ...
बहुत ही सशक्त पंक्तियाँ ....
लेखिका सुष्मिता को श्रद्धांजलि ....!!
बहुत ही शानदार ! आज सुष्मिता बैनर्जी की बर्बर ह्त्या ने इस रचना की प्रासंगिकता को दृढ़ता से स्थापित किया है ! वाकई विश्व के नक़्शे पर एक देश का नाम भर रह जाने के आलावा अन्य कोई पहचान नहीं रह गयी है अफगानिस्तान की ! काश उदारता और सहिष्णुता की, चाहे धीमी ही हो, एक हल्की सी बयार वहाँ भी पहुँच जाये !
जवाब देंहटाएंएक सुंदर देश के सुंदर लोगों का दुर्भाग्य है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार-8/09/2013 को
जवाब देंहटाएंसमाज सुधार कैसे हो? ..... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः14 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra
ये बहुत ही बेहतरीन कविता लिखी है आपने!
जवाब देंहटाएंएक स्वर्ग, जहाँ बिछा नरक है।
जवाब देंहटाएंशायद कोई श्राप गसित क्षेत्र है जहां कितने दशकों से मानवता की बलि दि जा रही है ...
जवाब देंहटाएंये हर उस देश का दुर्भाग्य है ...जहाँ बेगुनहा मारे जाते हैं ...झंझोरती हुई कविता
जवाब देंहटाएंलाजबाब रचना ..ताजगी से भरी हुई ..अफगान की सच्ची तस्वीर दिखती शानदार रचना ..हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
जवाब देंहटाएंसमूचे देश का कैसा हश्र है ..... बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंसमूचे देश का कैसा हश्र है ..... बेहतरीन रचना ।
जवाब देंहटाएंइस से पहले कि
जवाब देंहटाएंमिट जाए अस्तित्व
भूगोल की किताबों से
............बेहद सशक्त !