सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

वह कामरेड न हो सका




उसे 
बोझ ढोने से 
फुर्सत नहीं मिली 
जो बनाता 
मुट्ठियाँ
लगाता नारे 
उठता झंडा 
वह कामरेड न हो सका 

उसके घर का चूल्हा
 दो वक्त 
जला नहीं कभी 
नियमित 
जो जा सके वह 
किसी रैली में 
सुनने किसी का भाषण 
ढोने पार्टी का झंडा 
वह कामरेड न हो सका 

वह कभी 
स्कूल न गया 
फिर कैसे पढ़ पाता वह 
दास कैपिटल 
वह सुनता रहा 
मानस की चौपाइयां 
कबीर की सखियाँ 
वह कामरेड न हो सका 

उसे 
बचपन से ही 
लगता था डर 
लाल रंग से 
प्राण निकल जाते थे उसके 
छीलने पर घुटने 
उसे प्रिय था 
खेतो की हरियाली 
वह कामरेड  हो न सका 

बुधवार, 23 अक्टूबर 2013

मुआवजा

उसने नहीं लगाईं  फांसी 
वह कर्जे में नहीं डूबा  
उसके खेत सूखे रह गये 
आसमान तकते तकते 
उसके हिस्से नहीं आयेगा 
कोई मुआवजा  

वह नहीं मरा 
रेल दुर्घटना में 
वह कभी मंदिर नहीं गया 
सो नहीं मरा 
भीड़ में 
उसे नहीं मिलेगा कोई मुआवजा । 

उसका नाम 
नहीं है किसी सरकारी खाते में 
वह किसी रेखा के ऊपर या नीचे नहीं है , 
नहीं मिलेगा उसे 
दाल, चावल, चीनी, किरोसिन 
रियायत दर पर।  


परिधि से बाहर हैं 
जो लोग  
उन्हें नहीं मिलेगा 
कोई मुआवजा !

बुधवार, 9 अक्टूबर 2013

कालेज की कैंटीन और ब्लैकबेरी पर इन्टरनेट सर्च

जरुरी नहीं कि
जो कविता मैंने पढ़ी हैं
अपने छात्र जीवन में
वह आपने भी पढ़ी हो
जैसे लव सांग आफ जे एल्फ्रेड प्रुफ्रोक
और जीवन को समझने के लिए
कविता आवश्यक हैं
यह भी जरुरी नहीं है
हाँ एक कैंटीन जरुरी है
जुगाली के लिए

ठीक है कि
मेरे कालेज की  कैंटीन
लगती थी मुझे
इस कविता के पात्र की तरह
गीला फर्श
जो कभी सूखा ही नहीं
जैसे नहीं सूखते हैं
देश में मुद्दे
और उन मुद्दों पर बहस करते हुए
मैं कवि टी एस एलियट सा लगता था
जिन्होंने लिखा था 'लव सांग ऑफ़ जे एल्फ्रेज़ प्रुफ्रोक '
उद्वेलित हो उठता था
और कैंटीन में आते जाते मेरे सहपाठी
मुझे बस पात्र से लगते थे, निर्जीव
लक्ष्य विहीन नपुंसक

उनके चेहरे कई अर्थ लिए होता था
उनका चरित्र कई रूपों में होता था
और मैं मानो
समझ रहा था सभी अर्थ
पहचान रहा था सभी रूप
मैं भी एक प्रेम गीत लिखना चाहता था
ज़े एल्फ्रेड प्रुफोक की तरह
कडाही से वाष्पित होते तेल की चिपचिपाहट के बीच

वही कैंटीन है यह
जहाँ कार्ल मार्क्स की पूंजी कई बार बांच गया
मन के उकताने पर
फाड़ डाली कई प्रतियां पूंजी की
इसी कैंटीन से खोला गया
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ मोर्चा
जंगल बचाने की मुहिम भी
यही से शुरू हुई
जो स्थानीय अखबार के पांचवे पन्ने से आगे नहीं बढ़ सका
यहीं थमाया कई मित्रो को
लाल झंडा, तीर कमान, बाद में जिन्होंने थाम लिया
ए. के. फोर्टी सेवन, 
कहते हैं  हताश होकर किया है
नहीं माफ़ी चाहता हूँ मैं
उन सभी कृत्यों कुकृत्यों के लिए

हमारे सिद्धांत बदले
समय के साथ, समय की सुविधा से
इस बीच नदी संकरी हो गई
शहर के भीतर से गुजरने वाला सीवर
बह गया इसी नदी से होकर
कैंटीन में आते रहे हमारे जैसे लोग
बरस दर बरस
कैंटीन अब भी वैसी  ही है
तटस्थ
अब भी जे एल्फ्रेड प्रुफोक आते हैं यहाँ
वेन्डिंग मशीन से लेकर चाय
पढ़ते हैं पूंजी, करते हैं बहस
होते हैं उद्वेलित, करते हैं आह्वान
रोते हैं, कोसते हैं, विलापते  हैं
रचते हैं एक प्रेम गीत,
जिसमे नहीं है प्रेम जैसा कुछ

इस बीच
पंखे पर झूलती  कालिख
गिर पड़ता है
चाय की प्याली में
टूट जाता है चिंतन का क्रम
मन करता है
चलो ढूंढ लेते हैं
'स्ट्रीम ऑफ़ कांससनेस' का अर्थ
अपने ब्लैकबेरी पर ही इन्टरनेट सर्च के जरिये !

शनिवार, 5 अक्टूबर 2013

फिर भी



तोड़ दो 
मेरे हाथ 
क्योंकि ये 
लहराना चाहते हैं 
मुट्ठी 
तुम्हारे विरोध में 
उन सबके विरोध में 
जो हैं मिटटी, हवा के विरोध में 

तोड़ दो 
मेरी टाँगे 
क्योंकि ये 
चलना चाहते हैं 
संसद के दरवाज़े तक 
और खटखटाना  चाहते हैं 
बंद दरवाज़े 
जहाँ बन रहे हैं 
मेरे खिलाफ नियम 

मेरी जिह्ह्वा 
काट लो 
क्योंकि यह लगाना चाहती हैं 
नारे तुम्हारे खिलाफ 
तुम्हारी कुनीतियों के खिलाफ 
जो छीन रही रही 
मेरी ज़मीन , मेरे जंगल 
मेरे लोग 

मेरी आँखे 
फोड़ दो 
जो देखना चाहती हैं 
सत्ता से 
पूँजी की बेदखली 

फिर भी 
लहराएगा हाथ 
भिन्चेगा मुट्ठियाँ, 
कदमो के शोर से 
हिल देगा संसद का परिसर 
और बिना जिह्वा भी 
नारे से गूँज उठेगा 
राजपथ।