रविवार, 24 अगस्त 2014

बर्गर, बगोदर और ब्रह्मपुत्र



राजधानी के मेट्रो रेल के 
वातानुकूलित स्टेशन पर 
देर रात लौटते हुए 
किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी के 
मझौले स्तर का कामगार 
कर रहा होता है चर्चा अपने सहयोगी से
बेमौसम बारिश में 
ठंढ के लौटने की 
खाते हुए बर्गर 
ठीक उसी समय मेरे गाँव में एक किसान 
कोस रहा होता है बेमौसम बारिश को 
जिसने तोड़ दी हैं गेंहूं की पकी हुआ बालियां 
और ब्रह्मपुत्र घाटी से आई हुई एक  लड़की 
खो देती है अपनी अस्मिता 
इसी शहर के रौशनी भरे  सड़को के अँधेरे में  

यह समय रहा होगा 
जब पुलिस के छापे में 
पकड़ा गया एक नौजवान 
जिसकी धसी हुई आँखे लाल लाल थी 
बगोदर (झारखंड का एक शहर) में 
चुराते हुए कोयला 
उसके पास बरामद हुआ था 
एक थैले में देशी शराब 
जो वह कोयला डिपो के कर्मचारी को देता था 
घूस के तौर पर 
उस पर लगा दी गई हैं कई गैर जमानती धाराएं 

उसी समय एक मजदूर कुचला जाता है 
एक महँगी गाड़े से 
जो लौट रहा होता है अपने घर 
चौदह घंटे की नौकरी के बाद 
टूटी हुई साइकिल पर 
तोड़ देता है वह दम 
सरकारी अस्पताल के गेट पर 
शिनाख्त नहीं हो पाती है 
उस मजदूर की .   

खाते हुए बर्गर वही  युवक 
कर रहा होता है ट्वीट अपनी चिंताएं
मौसम के बारे में, 
लड़कियों की सुरक्षा के बारे में 
गरियाते हुए नक्सलियों को
तबतक डाउनलोड हो चुका होता है उसके स्मार्ट फोन पर 
एक और ट्रिपल एक्स फिल्म  

उसके भूगोल में नहीं है बगोदर या ब्रह्मपुत्र 
वह जानता है शहर के तमाम बर्गर आउटलेट्स ! 

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत ही उम्दा ..समसामयिक

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  2. वाह बहुत ही उम्दा ..समसामयिक

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  3. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवार के लिए चुरा ली गई है- चर्चा मंच पर ।। आइये हमें खरी खोटी सुनाइए --

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  4. अरुण जी , मैट्रो सिटी के स्टेशन पर कुछ पलों के अन्तराल में आपने विभिन्न स्थितियों का बहुत जी जीवन्त चित्र खींचा है । इतनी सारी विसंगतियाँ एक साथ वहीं हो सकती हैं ,जहाँ आदमी और आदमियत की पहचान भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसी होती है । कविता में बड़े ही सहज शब्दों में आधुनिक समाज की विडम्बना की एक भयावह तस्वीर खींची है । आपने बहुत दिनों बाद कुछ लिखा है । अच्छा लगा ।

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  5. बहुत ही मार्मिक, आज के विसंगत जीवन का सटीक चित्रण। हाथी के दांत...........

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  6. बहुत ही मार्मिक चित्रण।
    बड़े दिनों की अधीर प्रतीक्षा के बाद आज आपका आगमन हुआ है

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