गुरुवार, 16 मार्च 2017

समुद्र


सूख जाएँगी 
जब सब नदियां 
समुद्र लौटेंगे 
पहाड़ों की तरफ 



लहरें दूत हैं 
लौट जाते हैं 
देकर सन्देश 



यह समुद्र ही है 
जो नहीं होता अकेला 
इसके भीतर होता है 
पानी का अथाह शोर 



समुद्र 
बूढा हो रहा है 
मर जायेगा एक दिन 
फिर से बनेगी 
सृष्टि 


सोख लेता है 
हमारे भीतर का 
सब अहं 
बैठो तो एक पल 
समुद्र के साथ 



खारापन 
ताकत है 
समुद्र का 
पसीने की 


गुरुवार, 9 मार्च 2017

होली

1
रंग सब बदरंग हुए
काला पड़ा आसमान
होली कैसे मनाएं हम
जीवन है बिखरा सामान

2
पत्ते सब पीले पड़े
जड़ें पड़ी हैं सूखी
होली कैसे मनाएं हम
जनता सोये भूखी

3

कच्ची उसकी झोपडी
कच्ची उसकी भीत
कैसे चढ़े होली का रंग
लाल हो या पीत

अश्लीलता

अब अश्लीलता का रंग 
ब्लू नहीं होता 
अब यह सिमटा नहीं 
पीली पन्नी में 
न ही सिनेमा घरों में होता है 
इनका नियत समय , देर रात या सुबह सवेरे 
जहाँ जाने से भय और शर्म खाते हों लोग।  

अब इसकी घुसपैठ है 
दिल में, दिमाग में  
पूरी रंगीनियत के साथ 
यह समय है 
सामूहिक अश्लीलता का !