गुरुवार, 16 मार्च 2017

समुद्र


सूख जाएँगी 
जब सब नदियां 
समुद्र लौटेंगे 
पहाड़ों की तरफ 



लहरें दूत हैं 
लौट जाते हैं 
देकर सन्देश 



यह समुद्र ही है 
जो नहीं होता अकेला 
इसके भीतर होता है 
पानी का अथाह शोर 



समुद्र 
बूढा हो रहा है 
मर जायेगा एक दिन 
फिर से बनेगी 
सृष्टि 


सोख लेता है 
हमारे भीतर का 
सब अहं 
बैठो तो एक पल 
समुद्र के साथ 



खारापन 
ताकत है 
समुद्र का 
पसीने की 


9 टिप्‍पणियां:

  1. लहरें दूत हैं
    लौट जाती हैं होता
    तो कैसा होता?

    बहुत सुन्दर?

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुशील जी. आप मेरे एकलौते नियमित पाठक बचे हुए हैं।

      हटाएं
    2. कोशिश करता हूँ जहाँ तक पहुँच सकूँ। आभार।

      हटाएं
  2. तीखी और सीधे मतलब पे गहरी चोट करती है हर क्षणिका ... अरुण जी हमेशा की तरह लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर शब्दों और भावों से सजी रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत प्रभावपूर्ण रचना......
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपके विचारों का इन्तज़ार.....

    जवाब देंहटाएं