धान के बीज
बो दिए हैं तालाब के किनारे किनारे
उम्मीद में कि बादल बरसेंगे
और पौध बन उगेंगे
फिर से खेतो में रोपे जाने के लिए
सुबह दोपहर शाम
दो दो घड़े की बहंगी बना
सींच रहे हैं
धान के बीज वाली क्यारियां
पुरुष, स्त्री,
जवान होते बच्चे और बच्चियां
गाते हुए गीत
उमस और पसीने के बीच
जेठ की दुपहरी में
साथ में कर रहे हैं प्रार्थना
बादलों से/इन्द्र से /मेढ़को से
/मंदिरों में /मस्जिदों में
ग्राम देवता से/स्थान देवता से
अपनी अपनी कुल देवियों से
उनकी प्रार्थनाओं और गीतों में
नहीं होता है कोई धर्म/जाति
होता है केवल
जल और जल
कब तक करने दी जायेंगी ये पता नहीं है इस जल में भी किसी गाय की छवि निकल आयेगी और रंभाना शुरु कर देगी।
जवाब देंहटाएंसुन्दर।
ये जल नहीं जिन्दगी होती है, साँसें होती है जो धर्म से परे जाती से ऊपर उठ कर बस पेट देखती हैं ... गहरी प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (09-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"लोगों का आहार" (चर्चा अंक-2616)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक