शुक्रवार, 28 अप्रैल 2017

झारखण्ड एक्सप्रेस 5



तीन साल की बेटी
दुधमुंहे बेटे
और हंडिया के लती
अपने टेम्पो पति को छोड़कर
वह जा रही है दिल्ली
झारखण्ड एक्सप्रेस से ।

फरीदाबाद गुड़गांव या नोएडा
सब उसके लिए दिल्ली ही है
उसके साहब का बड़ा बंगला है
जिसके भीतर है तैरने वाला तालाब
तरह तरह के फलों के वृक्ष
और घास वाले मैदान जिसपर उसे
चढ़ने की नहीं है इजाजत ।

आनंद विहार स्टेशन पर उसको लेने आएगी साहेब की गाडी
अगले ही दिन लौट आएगी उसकी जगह पर काम कर रही उसकी बहिन
बंधक के तौर पर ।

वह बनाती है खाना
मेम साहब के बच्चों को लेकर आती है स्कूल से
टहलाती है उनके विदेशी कुत्ते को सुबह शाम
रात को आउट हाउस में सो जाती है
जहाँ कभी कभी आ जाते हैं
साहब, साहब का बेटा, साहब का ड्राइवर, चौकीदार और
उसको नौकरी दिलानेवाला
उसके गाँव के तरफ का ही आदमी ।

दामोदर की बेटी वह
बंधक है रोटी की
गिरवी है कपड़ो की
गुलाम है भूख की
वह चाहती है
झारखण्ड एक्सप्रेस कभी नहीं पहुचे दिल्ली ! 

5 टिप्‍पणियां:

  1. थोड़ा छोटा कर लीजिये फोंट साइज।

    बहुत कुछ आता जाता है सड़क के रास्ते बसों मे ट्रेन में अब शायद कुछ दिनो बाद हवाई जहाज से भी कहा जा रहा है चप्पल वाले भी चढ़ा दिये जायेंगे । हवा के रास्ते जल्दी पहुँच जायेगी वह।

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "उतना ही लो थाली में जो व्यर्थ न जाये नाली में “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. मजबूरी की बयानगी ... मार्मिक ... दिल को छूती हुयी रचना ...

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