आशाएं लेकर चलती है
झारखण्ड एक्सप्रेस
हटिया में लद लद कर
बैठते हैं सपने
कुछ शिक्षा के
कुछ रोज़गार के
कुछ सेहत के
लौट आती हैं
कुछ खाली हाथ
कुछ लहूलुहान
कुछ अभिशप्त
जो नहीं लौटती हैं
वे खो देती हैं
अपनी पहचान
झारखण्ड एक्सप्रेस
लौटती है लेकर बोरी भर कर
हताशा !
लौटना भी जरूरी है
जवाब देंहटाएंहताशा के लिये
अपनी पहचान
नहीं खोती है वो ।
धन्यवाद सर
हटाएंहर हांव से चलने वाली गाड़ी की यही व्यथा है ... कितनी आशाएं चलती हैं और चूर हो जाती हैं ...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नासवा जी।
हटाएंजीवन का यथार्थ
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता जी।
हटाएं