शुक्रवार, 21 अप्रैल 2017

मृत्यु


जीवन का 
अंतिम उत्सव है 
मृत्यु 

पत्तियां 
पीली पड़ जाती हैं 
मरने से पहले 
और छोड़ देती हैं 
शाखें 
पत्तियों का मरना 
वृक्ष के लिए नए कोपलों का 
फूटना भी है।  


इस ब्रह्माण्ड में 
कितनी ही सृष्टियाँ 
हर पल मरती हैं 
कहाँ रुकती है 
पृथ्वी 

मृत्यु का अर्थ 
रुकना नहीं है 
उत्सव है 

मैं चुनता हूँ मृत्यु 
तुम चुनो जीवन 
सही कहा न मैंने 
जीवन का अंतिम उत्सव है 
मृत्यु 


4 टिप्‍पणियां:

  1. ना जन्म चुना जाता है ना मृत्यु चुनी जाती है।
    सुन्दर रचना।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-04-2017) को
    "सूरज अनल बरसा रहा" (चर्चा अंक-2622)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  3. सब नहीं लेकिन कुछ वृक्षों की पत्तियाँ भी झरने से पहले नारंगी ,सिन्दूरी ,पीले आदि चटक-चमकीले रँगों में ऱँग जाती हैं -जीवन की उत्सवधर्मिता विसर्जन से कब हारी है?

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