एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे रहे न रहे
रहें न रहे दिन
रहें न रहे रात
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
हां !
ध्वनियों से फिर जन्म लेगी
कोई न कोई पृथ्वी
अन्तरिक्ष में
कहीं न कहीं !
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे रहे न रहे
रहें न रहे दिन
रहें न रहे रात
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .
हां !
ध्वनियों से फिर जन्म लेगी
कोई न कोई पृथ्वी
अन्तरिक्ष में
कहीं न कहीं !
मतलब तब भी भाईयो बहिनो सुनाई देगा :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
सत्य कहा.. ध्वनियाँ जब निकलती हैं तो अपना असर छोड़ जाती है. नया कुछ जरूर होता है. सुंदर रचना. बधाई.
जवाब देंहटाएंसुना है आवाजें रहती हैं इस भ्रम्हांड में ... डोलती रहती हैं किसी के कानों में पढने के लिए ... शशक्त रचना हमेशा की तरह ...
जवाब देंहटाएंगज़ब दिल पाया है आपने...अहसासों को महसूस करना...फिर शब्दों में ढालना...कमाल है...
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