गुरुवार, 30 नवंबर 2017

मौजूद रहेंगी ध्वनियाँ

एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .

जब सब सागर
सूख जायेंगे
नदियाँ मिट जायेंगी
मछलियों की हड्डियां
अवशेष बचेंगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .


मनुष्य रहे न रहे
मनुष्यता उसमे रहे न रहे
रहें न रहे दिन
रहें न रहे रात
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ .

हां !
ध्वनियों से फिर जन्म लेगी
कोई न कोई पृथ्वी
अन्तरिक्ष में
कहीं न कहीं  !

4 टिप्‍पणियां:

  1. मतलब तब भी भाईयो बहिनो सुनाई देगा :)

    बहुत सुन्दर।

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  2. सत्य कहा.. ध्वनियाँ जब निकलती हैं तो अपना असर छोड़ जाती है. नया कुछ जरूर होता है. सुंदर रचना. बधाई.

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  3. सुना है आवाजें रहती हैं इस भ्रम्हांड में ... डोलती रहती हैं किसी के कानों में पढने के लिए ... शशक्त रचना हमेशा की तरह ...

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  4. गज़ब दिल पाया है आपने...अहसासों को महसूस करना...फिर शब्दों में ढालना...कमाल है...

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