जीवन
अँधेरा ही तो है
अँधेरा न हो तो
क्या है रात का अस्तित्व
पर्वतों की गुफाओं से लेकर
पृथ्वी के गर्भ तक
नदियों के उद्गम से लेकर
समुद्र की तलहटी तक
पसरा हुआ है
अँधेरा ही अँधेरा
जैसे हर रात के बाद
दिन का होना तय है
तय है
दिन के बाद रात भी
उजाले के बाद अँधेरा भी
अँधेरा न हो तो
कहाँ पता चलता है
उजाले का प्रतिमान
रौशनी का अस्तित्व ही है
अँधेरे से
बीज को पनपने के लिए
जरुरी है अँधेरा
आँखों की नींद के लिए
जरुरी है अँधेरा
गर्भ के भीतर भी है
गहन अन्धकार है
हर परछाई का रंग
होता है अँधेरा
अँधेरा जीवन का ही
एक नितांत अनिवार्य पहलू है
मेरे जीवन में स्वागत है तुम्हारा
हे अन्धकार !
जहाँ उजाले होंगे वहां अँधेरे भी मिलते ही हैं
जवाब देंहटाएंअलग अनुभव करता है उजाला और अँधेरा
बहुत सुन्दर
हे अन्धकार । बढ़िया ।
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर