गुरुवार, 16 नवंबर 2017

प्लेटफॉर्म नंबर 16


यह है 
प्लेटफर्म नंबर 16 
जहाँ से जाती हैं 
रेलगाडियां 
पूरब की तरफ 

पूरब 
जहाँ सूरज पहले तो निकलता है 
लेकिन रौशनी पहुचती है 
सबसे बाद में 

इस प्लेटफार्म से 
रेलगाड़ियों में चढ़ती है 
थके हुए सपने
टूटे बिखरे
जड़ो से उखड़े हुए
अपनी जड़ों की तलाश के जल्दी में

इस प्लेटफार्म से
रेलगाड़ियों में चढ़ती है भीड़
भीड़ जिसने तय समय में
खडी कर दी अट्टालिकाएं
जिसकी भुजाओं ने दिन रात एक कर
पूरे किये विलायती आर्डर
जिसने उठाये कूड़े
जिसने पिलाई चाय
उठाये बोझे
प्रगति के पथ पर जिनका नहीं खुदा कभी कोई नाम

इस प्लेटफार्म से
रेलगाड़ियों में चढ़ता है रोगियों का जत्था
जीर्ण-शीर्ण शरीर लिए
कुछ ठीक हुए, कुछ नई तारीख लिए
कुछ लौटाए हुए
देश के सबसे बड़े अस्पताल से
सोचते हुए ऐसा अस्पताल उसके यहाँ क्यूं नहीं है
जहाँ हैं मरीज़ अधिक , जहाँ मरते हैं लोग अधिक

इस प्लेटफार्म से
रेलगाड़ियों में में लदता है बोरियों की तरह
बेटी की शादी करने वाला पिता,
शादी करने वाली बेटी
होने वाला दूल्हा
और उनमे शामिल होने वाला बाराती-सराती
जिनके मन में गूँज रहा होता है
देवी गीत, गाली गीत , उबटन गीत

प्लेटफार्म नंबर 16
रेलवे का प्लेटफार्म भर नहीं है
आशा की किरण है
पूरब के लिए .



2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत गहरी अभिव्यक्ति ... प्लेटफोर्म १६ के माध्यम से जीवन की कडुवी सचाई को परोसती है आपकी रचना ... कमाल की रचना ....

    जवाब देंहटाएं