प्रकृति की
अनुगूंज से
नदियों की धारा
सागर की लहरों
पक्षियों से कलरव से
निकली जो दिव्य
ध्वनियाँ
सैकड़ो वर्षों तक
सभ्यता की
कंदराओं में
किया विश्राम
गढ़े शब्द
मानव की जिह्वा
से
गुज़रते हुए पाए अर्थ
यही बने मानव के
उदगार के माध्यम
कहलाये भाषा
समय के सागर की
लहरों के साथ
तैरते हुए शब्दों ने की
अनंत यात्राएं
सभ्यता के सभी
कालखंडो के साथ
ये समृद्ध हुई
संस्कृति की अंग
बनी
मानव की उदगार
बनी
मनोभावों के
सम्प्रेषण का माध्यम बनी
जो शब्द
संस्कृति की
यात्रा के साथ नहीं चले
शब्दकोष की शोभा
बने
और कालांतर में
समाप्त हो गए
शब्द
जिन्होंने भूगोल
की सीमाओं को
धवस्त किया
वे विश्व की
भाषाएँ बनी
विश्व की वाणी
बनी
ज्ञान की सेतु
बनी
जिन्होंने भाषाओँ पर लगाए पहरे
भाषाएँ वहीँ समाप्त हो गई
मृतप्राय हो गई
भाषाएँ बनी कभी तलवार तो
कभी बनी योद्धाओं की हुंकार
कभी बनी ज्ञान का भण्डार
कभी संप्रेषित
किया संचित ज्ञान
तो कभी किया
नृपों को सावधान
भाषाएँ जब एक
हुई
बन गई
स्वतंत्रता का स्वर
भाषाएँ जब एक
हुई
देश हुआ एक ,
एक हुई
जन्शंक्ति
अलग अलग भाषाएँ
हैं जैसे
उंगलियाँ
एक साथ जब आती
है
बन जाती है
मुट्ठी
बन जाती है
शक्ति !
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-11-2017) को "मन वृद्ध नहीं होता" (चर्चा अंक-2801) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंआप सभी सुधीजनों को "एकलव्य" का प्रणाम व अभिनन्दन। आप सभी से आदरपूर्वक अनुरोध है कि 'पांच लिंकों का आनंद' के अगले विशेषांक हेतु अपनी अथवा अपने पसंद के किसी भी रचनाकार की रचनाओं का लिंक हमें आगामी रविवार(दिनांक ०३ दिसंबर २०१७ ) तक प्रेषित करें। आप हमें ई -मेल इस पते पर करें dhruvsinghvns@gmail.com
जवाब देंहटाएंहमारा प्रयास आपको एक उचित मंच उपलब्ध कराना !
तो आइये एक कारवां बनायें। एक मंच,सशक्त मंच ! सादर