सोमवार, 31 दिसंबर 2018

कहाँ है नयापन ?


आज सूरज नहीं उभरेगा 
पश्चिम की पृष्ठभूमि से 
न ही नदी बदल देगी अपना रास्ता 
मुकर जायेगी समंदर से मिलने से 
वृक्ष भी कहाँ तक संजोये रहेंगे पीले पत्ते 
जिन्हें सूख जाना है अंततः 
फिर कहो, कहाँ है नयापन
किस बात का है उत्सव ?

नहीं मिलेंगी रोटियां 
पैसों के बिना 
नहीं मिलेगी छत 
काम के पैसे वाजिब 
अब भी कहाँ मिलेंगे 
बलून बेचता वह बच्चा 
कहाँ पायेगा स्कूल 
फिर कहो, कहाँ है नयापन 
किस बात का है उत्सव ? 

बेटियां कोख में 
मारी जाएँगी फिर भी 
जो बचेंगी, संभालती फिरेंगी 
अपनी छाती जन्म भर 
कुछ सिसकियाँ भरती रहेंगी 
खामोशी के साथ 
फिर कहो, कहाँ है नयापन 
किस बात का है उत्सव ? 

गुरुवार, 13 दिसंबर 2018

सत्य - -वेंडोलिन ब्रुक्स

अमरीकी ब्लैक और जन सरोकारों के कवि वेंडोलिन ब्रुक्स की एक कविता " ट्रुथ" का अनुवाद सत्य ------------------------------------------------------ -वेंडोलिन ब्रुक्स और सदियों के लम्बे अन्धकार के बाद यदि कभी सूरज सामने आ जाता है कैसे करेंगे हम उसका स्वागत ? क्या हम उससे भयभीत नहीं होंगे ? क्या हम उससे डरेंगे नहीं ? बात सही है कि हम उसके लिए रोये हैं हमने की हैं प्रार्थनाएं इन तमाम काली रातों से भरे युग में कैसा लगेगा यदि किसी उजाले से भरी सुबह नींद खुले हमारे दरवाजों पर पड़े सदियों से मोटी जंजीरों पर रोशनी के प्रबल प्रहार के स्वर से क्या हम आश्चर्य से चौंक नहीं जायेंगे ? क्या हम भाग नहीं खड़े हो जायेंगे अपने पुराने परिचित खोल में हे वह कितनी ही धुंध और अँधेरे से ही भरा क्यों न हो? अनभिज्ञता में चैन की नींद में पड़े रहना क्या इतना सुकून भरा है ? गहन अन्धकार की चादर पड़ी है हमारी आँखों पर . (अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

धीरे धीरे मरना

ब्राजील की प्रसिद्द कवयित्री मार्था मेडिएरोस की एक कविता -
धीरे धीरे मरना
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वह जो बन जाता है आदत का दास
जो हर दिन पालन करता है एक ही दिनचर्या
जो नहीं बदलता है कभी अपना ब्रांड
जो नहीं उठता है किसी भी प्रकार का खतरा और नहीं बदलता है अपने कपड़ों का रंग
जो उन लोगों से बात नहीं करता जिन्हें वह नहीं जानता
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो टेलीविजन को बना लेता है अपना गुरु
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो छोड़ देता है जिजीविषा
जो चाहता है केवल सफेद और काला
और भावनाओं के भंवर के बीच केन्द्रित रहता है "मैं" पर,
जो जिसकी आंखों में अनुपस्थित है चमक
अनुपस्थित है अंगड़ाइयों में मुस्कान,
संघर्ष और भावनाओं में दिल
मर जाता है धीरे धीरे .
वह जो अपने आसपास चीजों को अधिक नहीं बदलता
जो हर काम से रहता है नाखुश
जो अनिश्चितता के लिए निश्चितता का खतरा नहीं उठाता
बंधे-बंधाए स्वप्न को पकडे रखता है
जो अपने जीवन में एक बारे बेफिक्री से किसी अच्छी सलाह को अनदेखा नहीं करता
मर जाता है धीरे धीरे.
वह जो नहीं करता है यात्रायें
जो नहीं पढता नई किताबें
जो नहीं सुनता है संगीत
जो स्वयं से नहीं रहता खुश
मर जाता है धीरे.
वह जो धीरे-धीरे अपने आत्म-प्यार को कर देता है नष्ट
जो अनुमति नहीं देता किसी को अपनी मदद करने की
जो दिन बिताता है अपने दुर्भाग्य और मूसलाधार बारिश की शिकायत करने में
मर जाता है धीरे धीरे
वह जो किसी कार्य को छोड़ देता है शुरू करने से पूर्व
जो उन विषयों पर प्रश्न नहीं पूछता जिन्हें वह नहीं जानता
जो उन प्रश्नों का उत्तर नहीं देता जिन्हें वह जाता है
मर जाता है धीरे धीरे
तिल तिल मरने से बचने के लिए
खुद को याद दिलाइये कि जिंदा रहना नहीं है महज साँसे गिनना
कुछ कोशिशे भी जरुरी हैं
अनन्य ख़ुशी के लिए
केवल आवश्यक है धैर्य और जिजीविषा .
(अंग्रेजी से अनुवाद : अरुण चन्द्र रॉय )