इस कायनात में
हर पल कितने ही लोग मरते हैं
जो मरते हैं
होते हैं किसी के पिता
होते हैं किसी की मां
होते हैं किसी के भाई/बहिन
किसी का बेटा भी हो सकता है वह
या बेटी ही
या वही किसी और ओहदे/पद/रिश्ते का हो सकता है
लेकिन जो मरता है
होता है कोई न कोई
यदि वह अनाम/अनजान भी हुआ तो क्या
होता है वह मनुष्य ही
फिर किसका शोक मनाया जाय
किसका शोक न मनाया जाय
यह तय करना मनुष्यता के बोध को कम करना है
और जन्म मृत्यु के बंधन से परे होना ही
प्राप्त करना है बुद्धत्व
यही कारण है कि
मैं हमेशा होता हूँ शोक में
किसी के जीवित रहते हुए भी
किसी के मृत्यु को प्राप्त करते हुए
क्योंकि हर पल मर रही है मनुष्यता !