नाओमी शिहाब नी
मैं देखना नहीं चाहती
क्या बाहर निकल गया
सपनों से भरी नीली मिट्टी की सुराही।
वृक्षों की खोई हुई साँसें
गुमशुदा स्त्रियां
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ल्युसिल क्लिफ्टन
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मैं जानना चाहती हूँ उन स्त्रियों के नाम
जो पुरुषों की तरह भीड़ बनाकर चलना चाहती थीं
फैला कर अपनी बाहें ,
मैं उन पसीने से लथपथ स्त्रियों के नाम भी
चाहती हूँ जानना
जो अपनी चर्बी घटाने के लिए
बहाना चाहती थीं जिम में बेहिसाब पसीना।
सोचती हूँ हम स्त्रियां ठहाका लगाते हुए
एक दूसरे को क्या कहते
पीते हुए बीयर अपने दोस्तों , अपनी टीम
या अपनी बिगड़ैल बहनों के साथ ?
जो भी स्त्रियां आई मेरे जीवन में
किसी भी तरह, कभी न कभी
दुनिया में क्या है कहीं उनका नाम !
अनुवाद : अरुण चंद्र राय
लहरें जो तुम तक
पहुँचने वाली हैं अभी
हमारे अधरों पर आई प्रार्थनाओं के सहारे
तुम्हें ले जाए भय के पार
तुम चूम लो हवाओं को
और तुम्हारे चूमने से
हवाएं मद्धम हो जाएँ या बदल लें अपना रुख
तुम आँखें खोल कर देखो नदी की बलखाती लहरों को
और सहजता से पार कर जाओ
इस किनारे से उस किनारे तक ।
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अनुवाद : अरुण चंद्र राय
तेनज़िन त्सुन्दुए की कविता "द पोनिटेल डेमीगाड" का अनुवाद
(तेनज़िन त्सुन्दुए ने यह कविता प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि आदिल जेस्सूवाला के लिए लिखी थी और टाटा साहित्य सम्मेलन में इसका पाठ किया था । )
एक घर
घर के ऊपर घर
घर के ऊपर और घर
बांस की तरह खड़ा हुआ
एक घर
एक धीमे धीमे चलते लिफ्ट में
बहत्तर धड़कनों के बाद
जब मैं पहुँच आपके पास
पाया कि आप गए हैं फ्रांस
अपनी प्रिय मल्लिका के साथ
आपने मुझे जिम्मेदारी दी
घर की रखवाली की
लेकिन मुंबई में एक तिब्बती के लिए
यह काम भी एक सहारा बन जाता है
आश्रय बन जाता है
18 वीं मंजिल पर ।
मैंने खुलकर आपसे कहा कि
मुझे अपने बगीचे में
अपने गुलाबों और नासपातियों के साथ खिलने दीजिए
मैं आपके पलंग के नीचे सो जाऊंगा
और बाहर आईने के सहारे देख लूँगा टेलीविजन ।
एक समय था जब
बंबई ने मुझे सिखाया
एक बडा -पाव और कटिंग चाय पर जीना
उस समय मैं बहुत भूखा और दुबला था
इतना कि मैं जैसे गायब ही हो जाऊंगा
कि मैं जैसे कोई पतंग हूँ जैसे बिना डोर के
और आपने कहा था कि मैं उड़ते उड़ते , धक्के खाते
किसी बच्चे के हाथ पड़ जाऊंगा ।
मैंने हमेशा ही आपने देखी है
गणपती की छवि
पीछे चोटी बांधे अर्ध-ईश्वर ।
बंबई डुबाती है मुझे
चौपाटी पर बार बार
सितम्बर में हर बार
आप उबार लेते मुझे आकार
एक शिक्षक, एक मेंटर ,, एक संपादक और अब
एक महाकवि की भांति !