सोमवार, 17 फ़रवरी 2025

धीरे धीरे खत्म हो जाएगा बसंत

धीरे धीरे

कम हो रहे हैं 

बसंत के दिन। 


धीरे धीरे 

कम हो रहे हैं

सर्दियों के दिन । 


धीरे धीरे 

कम हो रहे हैं

बरसात के दिन। 


धीरे धीरे 

गरम होकर धरती

उबल रही है 

अधिक दिनों तक । 


वैसे कम तो हो रहे हैं 

बरसात के दिन 

लेकिन बरस रहे हैं बादल

फट फट कर

नदियां तोड़ रही हैं

किनारों की मर्यादा 

बांध का सब्र

दिनों दिन हो रहा है ढीला

पहाड़ों की तरह । 


जितनी भी कोशिश करते हैं हम

उतनी ही अधिक बिगड़ रहा है

मौसम का मिजाज

बढ़ रही है 

धरती की खीझ। 


एक दिन आयेगा ऐसा भी

जब एक ही मौसम हुआ करेगा 

गर्मी, गर्मी और गर्मी

तब फूल खिलते ही मुरझाया करेंगे

प्रेम के मौसम का इंतजार भी 

हो जायेगा खत्म

जैसे धीरे धीरे खत्म हो रहा है बसंत।।

9 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. प्रेम के मौसम का इंतजार
    कभी न हो खत्म
    आँखों से बसंत के स्वप्न
    कभी न झरे
    आखिर सृष्टि का आधार है प्रेम...।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार १८ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. धन्यवाद श्वेता जी मेरी कविता को अपने लिंक में शामिल करने के लिए ।

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  3. उत्तर
    1. आपके एक "वाह " से मेरी कविता सार्थक हो जाती है सर ।

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  4. प्रभावशाली रचना
    काश ! ऐसा कभी न हो, कवि किसकी सुंदरता के गीत गायेंगे तब

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  5. सबक सिखाती सुंदर रचना।
    इस बार सर्दी हर बार से कम पड़ी।

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