मंगलवार, 18 फ़रवरी 2025

मायके न लौटने वाली स्त्रियाँ

 कुछ स्त्रियाँ 

कभी नहीं लौटतीं मायके 


जब भी वापसी का कदम उठाती हैं 

उनकी स्मृतियों में कौंध उठता है 

माँ का बेबस चेहरा 

पिता की घृणा और तिरस्कार 

वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट

अपने भीतर खोल में कछुए की तरह । 


वे अपने मन की कन्दराओं में 

छुपे रहस्यों के उदघाटन भर से 

 जाती हैं काँप

छिन जाती है उनके चहरे की कोमलता 

और तानों के तानों से डरकर

बेसुरा हो जाता है उनके जीवन का संगीत 

वे बढ़े हुये कदमों को लेती हैं समेट

अपने भीतर खोल में कछुए की तरह । 


मायके से संवेदनात्मक जुड़ाव 

विषय है कहानियों का 

कुछ स्त्रियाँ कहानियों को कम 

और वास्तविकता को अधिक जीती हैं । 



वास्तविकता में जीने वाली स्त्रियाँ 

जो अपनी पीठ की खाल को कर लेती हैं मोटी

जो अपने मन के भीतर बना लेती हैं खोल 

लौट कर भी नहीं लौटती हैं 

अपने मायके । 


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