करवटों में गुजार दी उमर
एक उलझन भी सुलझा ना सका
खोने पाने की जद्दोजहद में
वरसों का हिसाब रख ना सका
पत्ते गिनते रहे पतझड़ के
बदलते मौसम को परख ना सका
चाँद बदलता है हर रोज़
दिल को ये समझा ना सका
माथे पर सिलवटें आयी हैं उभर
हाथ मलता रहा खबर कर ना सका
पौधे कब बन गए पेड़
माली को पता लग ना सका
हम लौट आयेंगे जल्द ही
उनसे इतना इन्तजार हो ना सका
दीवारें उग गई हैं दिलों के बीच
बच्चों को ये सीख दे ना सका
करवटों में गुजार दी उमर
एक उलझन भी सुलझा ना सका
बहुत सुन्दर रचना .......
जवाब देंहटाएंSundar bhavabhivyakti...
जवाब देंहटाएंदीवारें उग गई हैं दिलों के बीच.......sach kaha
जवाब देंहटाएंman ki uljhan aur apne priy se dil ki baat na kah pane ki kasak dikhai padti hai. najuk bhavo ki khubsoorat abhivayakti......
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