मंगलवार, 2 मार्च 2010

अंजुरी भर ख़ुशी

वह
अंजुरी भर
पाना चाहती है ख़ुशी

दोनों बाहें पसार
महसूस करना चाहती है हवा
ऊँचा कर अपने हाथ
छू लेना चाहती है आसमान
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

ओस की बूंदों को समेटना चाहती है
अपनी नन्ही हथेलियों में
और गीले करना चाहती है अपने होठ
वह बादलों के नीले पंखों पर सवार हो
घूमना चाहती है दुनिया
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

नहीं चाहती है खोना
गुमनामी के भीड़ में
नहीं पसंद है उसे मशीनी शोर
और मुखौटे वाले दोस्त
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

गुनगुना चाहती है
किसी की कानों में
ए़क मीठी धुन और
फुसफुसाना चाहती है
किसी की धडकनों से साथ
ए़क कहानी की तरह
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

समा जाना चाहती है
किसी में
अपने छोटे छोटे खाव्बों के साथ
और जीना चाहती है इक पल के लिए
सिर्फ अपने लिए
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुती, सही ही कहा है आज हर किसी को तलाश है सिर्फ अंजुरी भर ख़ुशी की जो मिलती नहीं और मिल भी जाए तो सहेजी नहीं पाते . आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें

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  2. कमाल की रचना है.......सच कहूँ ये मैं हूँ......हर किसी को लगेगा अपना सा एहसास
    , वह एहसास जो हवाओं को छूना चाहती है, आकाश को पाना चाहती है .....
    बेहतरीन रचना

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  3. समा जाना चाहती है
    किसी में
    अपने छोटे छोटे खाव्बों के साथ

    बेहतरीन रचना, बेहतरीन प्रस्तुती !

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