वह
अंजुरी भर
पाना चाहती है ख़ुशी
दोनों बाहें पसार
महसूस करना चाहती है हवा
ऊँचा कर अपने हाथ
छू लेना चाहती है आसमान
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी
ओस की बूंदों को समेटना चाहती है
अपनी नन्ही हथेलियों में
और गीले करना चाहती है अपने होठ
वह बादलों के नीले पंखों पर सवार हो
घूमना चाहती है दुनिया
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी
नहीं चाहती है खोना
गुमनामी के भीड़ में
नहीं पसंद है उसे मशीनी शोर
और मुखौटे वाले दोस्त
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी
गुनगुना चाहती है
किसी की कानों में
ए़क मीठी धुन और
फुसफुसाना चाहती है
किसी की धडकनों से साथ
ए़क कहानी की तरह
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी
समा जाना चाहती है
किसी में
अपने छोटे छोटे खाव्बों के साथ
और जीना चाहती है इक पल के लिए
सिर्फ अपने लिए
वह अंजुरी भर पाना चाहती है ख़ुशी
बहुत अच्छी प्रस्तुती, सही ही कहा है आज हर किसी को तलाश है सिर्फ अंजुरी भर ख़ुशी की जो मिलती नहीं और मिल भी जाए तो सहेजी नहीं पाते . आपको व आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंwaah .........bahut hi sundar abhivyakti.
जवाब देंहटाएंकमाल की रचना है.......सच कहूँ ये मैं हूँ......हर किसी को लगेगा अपना सा एहसास
जवाब देंहटाएं, वह एहसास जो हवाओं को छूना चाहती है, आकाश को पाना चाहती है .....
बेहतरीन रचना
Bahut Bahiya !
जवाब देंहटाएंसमा जाना चाहती है
जवाब देंहटाएंकिसी में
अपने छोटे छोटे खाव्बों के साथ
बेहतरीन रचना, बेहतरीन प्रस्तुती !