बुधवार, 10 मार्च 2010

हरसिंगार उग आये हैं मेरे भीतर

थका हारा
उस दिन
जब तेरी गोद में
सर रख कर
सो गया था मैं
मेरे पसीने की
मेहनत भरी गंध को
दूर कर दिया था
'दीओ ' से
तुमने

दीओ की गंध
तो कब की जा चुकी है
लेकिन
तुम्हारी खुशबू से
महक रहा है
मेरे मन का आँगन

मानो
हजारों हरसिंगार
उग आये हो मेरे भीतर ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. मानो
    हजारों हरसिंगार
    उग आये हो मेरे भीतर ।
    ये हरसिंगार उगा रहे
    सुन्दर अनुभूति

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  2. कविताएं पढ गया आपकी , आपके सहज सरोकार दिखते हैं इनमें लि‍खते रहिए

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