(लीबिया के नागरिको को समर्पित जिन पर यह युद्ध थोपा गया है.) |
आधुनिक लीबिया का
सबसे खूबसूरत शहर
मैं बेनगाज़ी
आज एक युद्ध के मैदान में
गया हूँ बदल
प्राकृतिक संसाधनों पर
साधन सम्पन्नो की बलात का
प्रत्यक्ष शिकार हूँ मैं
वही बेनगाज़ी हूँ मैं
जिसका नाम एक पवित्र योद्धा के नाम पर
गया था रखा जो था तो योद्धा किन्तु
युद्ध उसके लिए
सत्ता का मकसद नहीं था
और १४५० में उस गाजी की मृत्यु के बाद
पड़ा था मेरा आधुनिक नाम
मेरी यात्रा
शुरू होती है एक प्राचीन यूनानी शहर के रूप में
जिसे कई बार किया गया तबाह
बसाया भी गया कई बार
मेरे मूल निवासी जो थे
वास्तव में आदिवासी, जनजाति
किया गया उन्हें विस्थापित
कभी पर्सिया लड़ाकुओं द्वारा
तो कभी रोमन विजेताओं ने
सुविधा के अनुसार बदले मेरे शासक
कभी अरेबियन आयें तो कभी इटालियन
और फिर विश्वयुद्ध में
'ओपरेशन कम्पास' के जरिये
जीता गया मुझे ऑस्ट्रेलियन की छठी डिविजन के द्वारा
और प्रकृति ने छिपा रखा था
मेरे गर्भ में आधुनिक जीवन का
सबसे कीमती उपहार
जिसकी भारी कीमत चुका रहा हूँ मैं
आधुनिक लीबिया का आधार मैं
स्वयं एक त्रासदी बन गया हूँ
एक बार फिर
याद आ रहा है मुझे
हेस्पेराइड का वह प्रिय गीत
कहा जाता है
जो मेरी ही धरती पर गाया गया था
परियों के द्वारा सृष्टि के प्रारंभ में
मैं बेनगाज़ी प्रार्थना रत हूँ
इस सृष्टि के अंत के लिए कि
फिर लौटेंगी वे परियां
किसी नए रूप में
बेनगाज़ी में .
बहुत सुन्दर ..बेनगाजी पर ...उसकी त्रासदी पर यह रचना उसके दुःख के कई आयामों से गुजरती है... आज की एक सामायिक रचना ..
जवाब देंहटाएंबेवजह थोपे गए युद्ध की त्रासदी किसी भी खूबसूरत शहर को ग्रहण लगा सकती है. बुद्धिजीवी चिंतन का प्रमाण देती रचना.
जवाब देंहटाएंbehatar
जवाब देंहटाएंशहर के दर्द को खूबसूरती से उकेरा है…………यही आपकी खासियत है।
जवाब देंहटाएंसुभानाल्लाह.....बहुत खूबसूरत पोस्ट
जवाब देंहटाएंकविता में इतिहासबोध का भवव समेटा हुआ है. बदलाव की इस करवट में शहर के शहर करवट ले रहे हैं,जाने किधर जाते हुए ये शहर यादों के बीच से झांकते हुए जान पड़ते हैं कभी.रचना पढ़ने हेतु यहाँ भाव के साथ ही विषय की जानकारी भी चाही गई है
जवाब देंहटाएंबेन्गाज़ी के दर्द को उकेर कर आपने जो लिखा है , उस दर्द को जैसे जिया है.
जवाब देंहटाएंकिसी का वरदान ही उसका अभिशाप साबित होता है भारत हो ,कश्मीर हो या बेन्गाज़ी सबकी सम्पदा ही उसकी तबाही का कारण बनी
जवाब देंहटाएंत्रासदी प्राकृतिक होती है. इसकी विभीषिका में उससे उबरने की भी शक्ति निहित होती है. किन्तु उन्माद.... सत्ता का उन्माद, सम्पन्नता और सम्पन्नता और सम्पन्नातर होने का उन्माद... प्राकृतिक संसाधनों को लूटने का उन्माद... इससे तो धरती की कोख ही बाँझ होती है. बहुत ही भावपूर्ण कविता है. मुझे तो नहीं लगता कि कोई भी सामयिक विषय आपकी कलम से बच पता है. बेजोड़ सामर्थ्य है आपमें. नमस्कार ! धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंpoetic story of this great city.... simple, historic, convincing, full of optimism (at the end).... my thanx for such a lovely expression of concern....
जवाब देंहटाएंएक शख्शियत का इतनी खूबसूरती से परिचय एक अच्छा कवि ही करवा सकता है दोस्त |
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंदाज़ |
इस बेवजह के थोपे हुए युद्ध और बेन्गाजी की त्रासदी बहुत सटीक मार्मिक रूप में उकेरी है आपने.
जवाब देंहटाएंbahut hi marmik chitran
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपने काव्य के माध्यम से जगत में उठ रहे अन्तर्विरोधों को अपनी रचना-प्रक्रिया का अंग बनाकर सृजन के धरातल पर लाया है। निश्चय ही यह प्रशंसनीय है। आपने इस युग की वस्तु-स्थिति को लीबिया या बेनगाज़ी के धरातल पर समझा है। उसके सामाजिक, राजनैतिक और कूटनीतिक अंतर्विरोधों को पहचाना है। वैश्विक-जागरण की आवश्यकता महसूस किया है। इसके साथ ही एक जागृत विवेक के साथ साहित्य को आम जनता के साथ कुशलतापूर्वक जोड़ा है।
जवाब देंहटाएंबेन्गाज़ी का दर्द ....बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंरचना के माध्यम से पूरे इतिहास को समेटकर आपने अपनी लेखनी का सामर्थ्य सिद्ध किया है .......बहुत-बहुत साधुवाद |
बहुत संवेदनशीलता के साथ आपने शहर के दर्द को शब्द दिए हैं ! चंद सत्तालोलुप स्वार्थी मनुष्यों की संकीर्ण मानसिकता का मोल तमाम निरपराध जनता और वहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य को चुकाना पड़ता है ! बहुत ही खूबसूरत और भावपूर्ण रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें ! बेनगाज़ी के बारे में बहुमूल्य जानकारी देने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकविता में आपने बेनगाज़ी का पूरा इतिहास बता दिया,क्या बात है.आप के अन्दर धीरे धीरे आशु कविता वाले गुण आते जा रहे हैं.बहुत खूब.keep it up.
जवाब देंहटाएं@ केशव कर्ण
जवाब देंहटाएंकेशव जी आपके "त्रासदी प्राकृतिक होती है. इसकी विभीषिका में उससे उबरने की भी शक्ति निहित होती है. किन्तु उन्माद.... सत्ता का उन्माद, सम्पन्नता और सम्पन्नता और सम्पन्नातर होने का उन्माद... प्राकृतिक संसाधनों को लूटने का उन्माद... इससे तो धरती की कोख ही बाँझ होती है." ... कथन से कविता को बल मिला है.. बहुत बहुत आभार !
arun jee...aab sach me bahut samvedansheel insaan hai..ab dekhiye na hame ye bhi pata na tha ki Benagaji bhi koi jagah hai...aur aapne na usko jana. balki usko sabdo me jeeya..!!
जवाब देंहटाएंachchha laga..!
बेवजह के थोपे हुए युद्ध और बेनगाज़ी की त्रासदी का मार्मिक चित्रण..
जवाब देंहटाएंWonderful creation !
जवाब देंहटाएंएक बार फिर
जवाब देंहटाएंयाद आ रहा है मुझे
हेस्पेराइड का वह प्रिय गीत
कहा जाता है
जो मेरी ही धरती पर गाया गया था
परियों के द्वारा सृष्टि के प्रारंभ में
kisi desh ke dukh ko bhaut khub darshaya hai :)
समसामयिक विषय पर एक सुन्दर कविता .
जवाब देंहटाएंयोद्धाओं के ऊपर नगर का नाम रख दिया और युद्ध न दें वहाँ पर।
जवाब देंहटाएंउत्तरी अफ़्रीका के इस हिस्से का इतिहास ही लड़ाइयों से भरा हुआ है
जवाब देंहटाएंखूबसूरत जानकारी मिली आपकी इस सुन्दर अभिव्यक्ति से.वाह!
जवाब देंहटाएंबेनगाजी की प्रार्थना
"मैं बेनगाज़ी प्रार्थना रत हूँ
इस सृष्टि के अंत के लिए कि
फिर लौटेंगी वे परियां
किसी नए रूप में
बेनगाज़ी में ."
बेनगाजी के माध्यम से आपने इतिहास और वर्तमान का जीवंत चित्रण किया है , जीवन के अनुभूत सत्य को कोई किस तरह महसूस करता है लेकिन बेनगाजी शहर की दास्ताँ को बहुत सुंदर और सार्थक शब्दों के माध्यम से उकेरा है आपने .......!
जवाब देंहटाएंयुद्ध रोके रहने के लिए भी कम लड़ाई नहीं होती.
जवाब देंहटाएंकविता के माध्यम से एक सच्चाई व्यक्त करना और ज्वलंत पहलुयों पर प्रकाश डालना कवि का धर्म होता है...आपकी आज की कविता तो लाज़वाब है..एक घटना जो पूरी दुनिया को झकझोर दी...धन्यवाद अरुण जी...बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंऐसा कहीं न हो, खुदा करे.
जवाब देंहटाएंनवसंवतसर की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत उम्दा रचना...
जवाब देंहटाएंआपका चिंतन वाजिब है ... बहुत भाव पूर्ण तरीके से आपने बेंग़ाज़ी के दुख को प्रगट किया है ...
जवाब देंहटाएंmarmik chitran........kuch na sath aaya tha aur na jaega ye taanashah
जवाब देंहटाएंkyo nahee samajh paate.....
हेस्पेराइड का वह प्रिय गीत
जवाब देंहटाएं...
जो मेरी ही धरती पर गाया गया था
परियों के द्वारा सृष्टि के प्रारंभ में
सत्ता के इस महायुद्ध में भी ........ सृष्टि की नयी सोच ... नयी लय और गति दे रहे हैं.... अरुण जी. आपकी कविताई में यही नयापन ही तो अलग है.
एक शहर का दर्द उभर आया है पंक्तियों में...
जवाब देंहटाएंसार्थक और सामयिक कविता
वाह अरुण भाई वाह| आपने वाकई दुखती रग पर हाथ रख दिया है| ये युद्ध सच में किसी का भला नहीं करते| फिल्म बॉर्डर में युद्ध की त्रासदी झेलते लोगों के सरोकारों, परिस्थितियों और मनोभावों को व्यक्त करते गीत को सुन कर मैने महसूस किया कि इस के दुष्परिणाम सिर्फ़ इतने ही नहीं होने चाहिए, महायुद्धों का एक दुष्परिणाम मैने अपने एक शे'र के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है, आप सभी के साथ भी शेयर करता हूँ:-
जवाब देंहटाएंहजारों साल पहले सीसीटीवी आ गई होती
युधिष्ठिर जो शकुनि के सँग जुआ खेला नहीं होता
सन्दर्भ:- संजय द्वारा ध्रुतराष्ट्र को महाभारत युद्ध का आँखों देखा हाल सुनाया जाना
आपने वाकई बहुत सही विषय का चुनाव किया है|
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं...वर्तमान का जीवंत चित्रण किया है
नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट 'वन्दे वाणी विनयाकौ' पर आपका स्वागत है.
बेन्गाज़ी का दर्द,
जवाब देंहटाएंउसकी त्रासदी,
उम्मीद और प्रार्थना,
कानों में मानों घोल रही -
शीशा |
एक चीत्कार सुनाई देती है |