गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

एक अमेरिकी सैनिक का प्रेम पत्र


प्रिय !
जब मैं फौज में 
हुआ था भर्ती 
तुम नहीं थी लेकिन 
तुम्हारे होने का एहसास था

एहसास था कि 
हम भी न्यूयार्क   सिटी के मध्य में 
लेंगे एक आलीशान घर 
जिसमे तुम होगी 
और होंगे मेरे बच्चे 
जिन्हें मैं पूरी आज़ादी दूंगा     
अपने बेडरूम में घुसने की 
वहां होंगे हम और तुम और हमारे कई बच्चे.

आज बहुत याद आ रही हो तुम 
और एअरपोर्ट पर विदा होते हुए 
किसी अनाम देश के लिए 
जहाँ मेरा युद्ध उनसे है 
जिन्हें मैं नहीं जानता 
जिनके बारे में मैंने नहीं सुना
जिन्होंने नहीं पहुंचाई कभी 
तुम्हे कोई तकलीफ 

जब भी मेरी गोली से
मरता है कोई अजनबी 
उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
मुझे तुम सी लगती हैं 
और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं 
मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं 
तुम्हारे गर्भ में. 

यहाँ की धरती 
वैसी नहीं जैसे मेरा गाँव 
वेरमोंट शहर से कोई २०० मील उत्तर 
मैं अपने धरती की 
करना चाहता था सेवा 
अपने अमेरिकन साथियों के लिए 
दे देना चाहता था अपने प्राण 
मैं तुम्हारे साथ 
अपने शहर जिसमे एक चौथाई लोग
बुज़ुर्ग हैं और हैं अपने बच्चों से दूर 
करना चाहता था उनकी सेवा 
लेकिन त्रासद हो गया है मेरा जीवन 
कि सिखा दी गई है मुझे
गोली, बारूद, बम की भाषा
मैं हथियारों को चलाने और
उनकी मारक क्षमता को जांचने का यन्त्र हूँ. 

प्रिये 
तुम्हे बहुत प्रिय लगती थी  
मेरी पीतल सी आँखें 
कहती थी तुम 
इनमें  बसता है
झील के उस पार का इन्द्रधनुष
कहती थी तुम
एमिली डिकिन्सन की कवितायें हैं इनमे
अब इन आँखों में 
रेत बसती  है रेगिस्तान की 
कतई गीली  नहीं है जो 

विश्वास जैसे शब्दों को
निकाल दिया गया है
मेरे शब्दकोष से
जो शब्द भर दिए गए हैं
उनका कोई मानवीय तर्क है ही नहीं
कोई अर्थ नहीं है
बस याचना है आँखों में
चीत्कार है

प्रिये 
मुझे जिन्होंने झोंका है 
इस युद्ध में 
उन्होंने नहीं लड़ी कभी कोई लड़ाई 
उनकी यात्राओं से पूर्व होते हैं रास्ते खाली 
परिंदों के पर भी काट दिए जाते हैं 
एक बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वालों के 
रास्ते में नहीं आता कोई लोक
इन्होने देखे नहीं कभी कोई युद्ध का मैदान
नहीं जानते वे
किसी रेगिस्तान में प्यासे हताश को उड़ा देना गोली से
कितना मर्मान्तक है

थक गया हूँ मैं 
एक अनाम देश में
अपने जैसे मानव जाति के  विरुद्ध ही 
न ख़त्म होने वाले युद्ध से 
निरुद्देश्य मेरा जीवन 
कब समाप्त हो जाए तय नहीं यह 
लेकिन मुझे पसंद नहीं कि 
मेरे बाद दिया जाए तुम्हे मोटा मुआवजा
या करो तुम ह्रदय विदारक चीत्कार 
या शामिल हों मेरे दोस्त कैडिल मार्च में 
क्योंकि मैं यदि मरूँगा तो 
किसी के मारने के क्रम में ही
किसी आतंकवादी सा. 

मैं एक सैनिक से
बना दिया गया हूँ स्वचालित हथियार प्रिये !
नहीं रहा मैं पीतल की आँखों वाला 
तुम्हारा चार्मिंग डार्लिंग
वीकेंड थियेटर के किसी रोमैंटिक नाटक का पात्र सा.

33 टिप्‍पणियां:

  1. एक सैनिक दे दर्द को उँडेल कर रख दिया है सच कितनी बार वो जबरदस्ती युद्ध की आग मे झोंक दिये जाते हैं बिना उनके जज़्बातो की परवाह किये एक यंत्र की तरह और आजकल तो यही देखने मे आ रहा है फिर चाहे अफ़गानिस्तान हो या लीबिया………… उस व्यथा को उत्तम अभिव्यक्ति दी है……………अति सुन्दर रचना।

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  2. एक अमेरिकी सैनिक की व्यथा बहुत ही मार्मिक रूप से व्यक्त हुई है .....

    दिल को झकझोर देनेवाली आपकी रचना बड़ी सहजता एवं व्यापकता सहेजे हुए अंत तक निर्वहित हुई है...

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  3. मैं हथियारों को चलाने और
    उनकी मारक क्षमता को जांचने का यन्त्र हूँ. ....

    हर सैनिक की यही त्रासदी है. वह अपने स्वविवेक से नहीं चलता बल्कि राजनीति की चौसर पर पड़े पासे उसकी नीति और गति को नियंत्रित करते हैं . युद्ध से प्रभावित सैनिक की मनोदशा का मर्मान्तक चित्रण.

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  4. जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.

    संवेदनात्मक धरातल पर आपकी कविता दिल दहला देने वाली है.बार बार पढ़ रहा हूँ.सच,युद्ध से शांति की बहाली कभी सम्भव नहीं है.मुझे अरुण सहिबाबादी का एक शेर याद आ रहा है:-
    जंग में दोनों ही जानिब से बिखरता है लहू,
    जीतने वाला भी आता है बहुत कुछ हार के

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  5. कविता बेहतरीन है, सैनिक के मन में बहकते उदगार हैं..... पर अमेरिकी सैनिकों में मानवता के प्रति कोई ज़ज्बा होगा ?

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  6. वो तो रोबर्ट की तरह तो काम करते हैं.

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  7. अरुण भाई वाकई बहुत ही हृदयस्पर्शी और संवेदना प्रधान प्रस्तुति है ये| बधाई और धन्यवाद मुझसे साझा करने के लिए| अमेरिका की शान में एक शेर:-

    जो मसीहा कहे खुद को, सुलह का, अमरीका|
    तो किराए पे सबको भेजता लश्कर क्यूँ है||

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  8. जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.
    gahri mansikta ki gahri samvednayen

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  9. सुन्दर......मार्मिकता में लिपटा यतार्थ

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  10. मैं एक सैनिक से
    बना दिया गया हूँ स्वचालित हथियार प्रिये !

    नहीं रहा मैं पीतल की आँखों वाला
    तुम्हारा चार्मिंग डार्लिंग
    वीकेंड थियेटर के किसी रोमैंटिक नाटक का पात्र सा.

    ek dum alag si rachna....
    kuch samajh nahi aa raha kya kahun!!

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  11. अद्भुत!
    क्या लिखूं सोच रहा हूं ... बौत देर से ...
    इस तरह की रचनाएं काल जयी हो जाती हैं।
    .... और होनी भी चाहिए।
    बस यही है कि आज अरुण अरुण है, कोई मुक्तिबोध, अज्ञेय या शमशेर नहीं।
    वक़्त अरुण का भी अएगा।
    मुहे ये लिखते हुए कोई हिचकिचाहट नहीं है।
    अरुण जी आपसे यह बात चैट पर कह रहा था, सोचा सार्वजनिक ही कर दूं।

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  12. हर सैनिक का हृदय यही बोलता होगा। युद्ध क्यों होते हैं?

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  13. kavi man ki majbooriyan , har angle se soch leti hain ...kisne dekha uska man rote hue ...bahad samvedansheel

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  14. प्रिये
    मुझे जिन्होंने झोंका है
    इस युद्ध में
    उन्होंने नहीं लड़ी कभी कोई लड़ाई
    उनकी यात्राओं से पूर्व होते हैं रास्ते खाली
    परिंदों के पर भी काट दिए जाते हैं
    एक बड़े लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व करने वालों के
    रास्ते में नहीं आता कोई लोक
    इन्होने देखे नहीं कभी कोई युद्ध का मैदान
    नहीं जानते वे
    किसी रेगिस्तान में प्यासे हताश को उड़ा देना गोली से
    कितना मर्मान्तक है

    shabd naheen hain mere paas ki kavita ke jitna hi star prashansa ko de sakoon ,,,,man ko vyathit aur udwelit karti huee kavita ,,,,,,bahut khoob !

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  15. जहाँ मेरा युद्ध उनसे है
    जिन्हें मैं नहीं जानता
    बहुत मार्मिक अंतर्कथात्मक अभिव्यक्ति

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  16. ek sainik ke marmik udgar....jo ek insan hai aur ek aam aadmi jaisi uski bhi masoom si khvahishe hai...sunder chitran ....

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  17. जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.

    बहुत ही बढ़िया ....

    जवाब देंहटाएं
  18. स्वेच्छा से सैनिक का "पेशा" अपनाने वाले के लिए तो यह अर्जुन के सामान द्वंद्व,वो भी रणभूमि में.. चिंता का विषय है.. सचाई यही है कि कृष्ण अमेरिका में नहीं जन्मे थे!!
    यह पात्र एक सैनिक का नहीं एक इंसान का है!! और इंसान राष्ट्रीयता से परे होता है शायद!!
    आपकी अभिव्यक्ति,हमेशा की तरह मुग्ध करने वाली!!

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  19. maja aa gaya padkar....bahut umda....
    shabdon ka prayog
    ghatna ka sanjyog
    sainik ki peeda
    ranbhumi ka chitran
    sundar kalpana...
    kalpana nahi sach
    badhai....arun ji...

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  20. सैनिक भी आखिरकार इंसान होते हैं। लेकिन युद्ध करना उनकी मजबूरी है। नाना पाटेकर अभिनीत फिल्‍म 'अब तक छप्‍पन' का संवाद याद आ गया जहां पुलिस इन्‍स्‍पेक्‍टर बने नाना कहते हैं, 'अपने को सोचना एलाउड नहीं है, अपने को केवल घोडा दबाने का।'

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  21. एक संवेदनशील, दर्दभरी कहानी ..चलचित्र की भांति नजरों के सामने चलती सी कविता.
    बहुत सुन्दर.

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  22. उन सैनिकों की व्यथा बहुत कम लोग समझते हैं...जो शपथ तो अपने देश की रक्षा की लेते हैं...पर जान हथेली पर लिए लड़ते हैं, किसी और देश के लिए.

    बहुत ही मार्मिक कविता है...कर्तव्य और इच्छा के बीच द्वंद्व का.
    हर सैनिक के मन में घुमड़ते भावों को कुशलता से शब्दों में बाँधा है.

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  23. मार्मिक ,दर्द भरी अभिव्यक्ति जिससे मन आंदोलित होता है.दिल तो हर व्यक्ति के पास है ,चाहे वह अमेरीकी हो या कोई और.
    अमेरिकी सैनिक की युद्ध में झोंक दिए जाने की अनुभूति को आपने खूबसूरती से उकेरा है.
    मेरे ब्लॉग पर नहीं आ रहें हैं आप. क्या कोई नाराजगी है ?

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  24. जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.
    _____________________


    मैं एक सैनिक से
    बना दिया गया हूँ स्वचालित हथियार प्रिये !
    नहीं रहा मैं पीतल की आँखों वाला
    तुम्हारा चार्मिंग डार्लिंग
    वीकेंड थियेटर के किसी रोमैंटिक नाटक का पात्र सा.
    _________


    एक एक पंक्ति सशक्त है।

    जवाब देंहटाएं
  25. शब्द शब्द में
    किसी अनजाने लेकिन अपने-से
    दर्द का एहसास उभर रहा है
    सिर्फ
    पढ़ ही पाया हूँ,,,
    बिलकुल लग रहा है
    कि इस योग्य नहीं हूँ
    कि कुछ कह पाऊँ ......

    अभिवादन स्वीकारें .

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  26. gahri peeda liye huye hai bhavnaaye ,bahut sundar likha hai ,ramnavmi ki badhai .
    जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.
    aankhe nam ho gayi padhte huye .

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  27. अरूण जी, कविता पढकर रोमांचित हूं। इतनी शानदार रचना के लिए बधाई स्‍वीकारें।
    ............
    ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
    लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

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  28. जब भी मेरी गोली से
    मरता है कोई अजनबी
    उसके शव पर विलाप करती स्त्रियाँ
    मुझे तुम सी लगती हैं
    और बच्चे बिल्कुल ऐसे लगते हैं
    मानो वही है जिसे छोड़ आया था मैं
    तुम्हारे गर्भ में.

    बहुत गहन भाव समेटे यह पंक्तियां ..अनुपम प्रस्‍तुति के लिये बहुत-बहुत बधाई ।

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