मैं वर्ष १९९८ में मई में दिल्ली आया था. एम बी ए करने के बाद भी नौकरी मिलनी कठिन हो रही थी. घर से जो पैसे लाया था सो ख़त्म हो रहे थे. ऐसे में एक अदद नौकरी की तलाश थी. लिखता बचपन से था सो ट्रेनी कापी राईटर के लिए पहुँच गया सेंसर एडवरटाईजिंग,झंडेवालान. इंटरव्यू में एक कापी टेस्ट कराया गया. पोखरण न्यूक्लियर टेस्ट को ध्यान में रखकर एक विज्ञापन बनना था एक अंडरगारमेंट क्लाइंट के लिए. कई लड़के आये थे लेकिन मेरा काम और दाम दोनों पसंद आया था. यहीं से शुरू हुआ मेरा विज्ञापन में कैरियर. डॉ. राजेंद्र अग्रवाल जी के सान्निध्य में. एक बार की बात है मैं दफ्तर के काम को ठीक से समझ नहीं पा रहा था. अग्रवाल सर ने एक पर्ची पर लिख कर दिया...""I will find the way or will make one"
मैं तो डर गया था. मुझे लगा किसी और के लिए जगह खाली करने के लिए कहा गया है. लेकिन नहीं ! उन्होंने मुझे समझाया कि रास्ता नहीं मिल रहा तो रास्ता बना लो. आज भी जब मुझे रास्ता नहीं मिलता है आम जीवन में तो उनकी ये पंक्तियाँ प्रेरित करती हैं. विज्ञापन के क्षेत्र में थोडा अपने लिए स्थान बनाने और थोडा बहुत अच्छा लिखने का सारा श्रेय अग्रवाल सर को जाता है. स्वयं डॉ.अग्रवाल एक सफल कार्पोरेट होने के साथ साथ सजग चिन्तक, समाजसेवी और लेखक भी हैं. लायंस क्लब के दिल्ली के प्रेसिडेंट रह चुके डॉ. अग्रवाल की एक पुस्तक "अच्छे लोगों के साथ बुरा क्यों होता है?" डायमंड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है. उनकी दूसरी पुस्तक "बढती चाहतें, बदलते रिश्ते" ज्योतिपर्व प्रकाशन से प्रकाशित होने वाली है. साथ ही इसी प्रकाशन से उनकी पहली पुस्तक का नया संस्करण भी आ रहा है.
गत २० जुलाई को अग्रवाल सर की माता जी श्रीमती रामदुलारी जी का देहांत हो गया. कहते हैं कि ६० साल के बाद वे बड़े हो गए हैं अब. यह कविता अग्रवाल सर की पूजनीय माताजी के चरणों में समर्पित.
केवल पांच तत्वों से
नहीं है बनती
उसमें होता है
एक अतिरिक्त तत्व
संस्कार का
यह तत्व
नहीं है
विधि के विधाता
ब्रह्मा के पास
ना ही है
विश्व के पालनकर्ता विष्णु के पास यह तत्व
सरस्वती भी नहीं हैं स्वामिनी इसकी
लक्ष्मी की समस्त सम्पदा से
लक्ष्मी की समस्त सम्पदा से
नहीं ख़रीदा जा सकता है
यह तत्व
यह तो देती हैं
केवल माँ
माँ का नहीं होना
जीवन में
केवल माँ
माँ का नहीं होना
जीवन में
एक ऐसा खालीपन है
जिसे दुनिया की समस्त स्त्रियाँ भी
नहीं भर सकती मिलकर
आज
इस खालीपन के साथ
मैं खुद को
ऐसे महसूस कर रहा हूँ कि
तैयार रहना है सभी को
इस खालीपन के लिए
जिसे दुनिया की समस्त स्त्रियाँ भी
नहीं भर सकती मिलकर
आज
इस खालीपन के साथ
मैं खुद को
ऐसे महसूस कर रहा हूँ कि
तैयार रहना है सभी को
इस खालीपन के लिए
विनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंमाँ की दुआओं में बहुत असर होता है!
जवाब देंहटाएंमाता जी को नमन!
जिजीविषा के धनी अपना मार्ग खुद बना लेते हैं !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि।
जवाब देंहटाएंपुण्य स्मृति और संस्कार कुछ हद तक पूरा करेंगे इस कमी को.
जवाब देंहटाएंईश्वर को इसीलिए कहा जाता है
जवाब देंहटाएं"त्वमेव माता ..."
'अग्रवाल'जी के लिए समर्पित आपकी भावनाएं सराहनीय
हैं.
अति सुन्दर प्रस्तुति के लिए दिल से आभार अरुणजी.
आज 25- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
जवाब देंहटाएं...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
____________________________________
बहुत सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंबधाई ||
बहुत सुन्दर ||
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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aaj pahli baar aapke blog pe aana hua..maa pe aankhein nam karne wali is rachna ko padhne ka aur aapse judne ka awsar prandan karne ke liye tetala manch aur aaderniya sangeeta ji bhi hardik dhnywad..pranam ke sath
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी अनुपम रचना।
जवाब देंहटाएंmaan vah anamol vyakti hai jo phir kabhi nahin milti aur usako ham kisi bhi rishte men talash nahin kar sakate hain. usake jaisa pyaar bhi kam hi milega.
जवाब देंहटाएंमाँ का नहीं होना
जवाब देंहटाएंजीवन में
एक ऐसा खालीपन है
जिसे दुनिया की समस्त स्त्रियाँ भी
नहीं भर सकती मिलकर
sach kaha
माता जी को नमन!
जवाब देंहटाएं"maaaa"
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना....
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि
आज
जवाब देंहटाएंइस खालीपन के साथ
मैं खुद को
ऐसे महसूस कर रहा हूँ कि
तैयार रहना है सभी को
इस खालीपन के लिए
Soch ke bhee ek khaalipan mahsoos hota hai.
Agarwaal jee ne bahut badhiya panktiyan likh deen aap ke liye!
bhawbhinee......behad achchi.
जवाब देंहटाएंमाँ का नहीं होना
जवाब देंहटाएंजीवन में
एक ऐसा खालीपन है
जिसे दुनिया की समस्त स्त्रियाँ भी
नहीं भर सकती मिलकर
bhaavamay sundar rachana| maata ji ko saadar shradhanjali
अरुण जी! जिन देवताओं का ज़िक्र आपने इस कविता में किया है, उन्से तो हमारा जनम का बैर है.. मगर जब कभी भगवान का स्मरण किया है तो बस यही याद आता है कि
जवाब देंहटाएं"जिसको नहीं देखा हमने कभी, फिर उसकी ज़रूरत क्या होगी,
ऐ माँ तेरी सूरत से अलग भगवान की सूरत क्या होगी!"
माँ नामक औरत का छठा तत्व तो पूरी सभ्यता का निर्माण करता है..तभी तो विश्व की सभी महान सभ्यताएं माताओं की देन हैं!!
माँ का नहीं होना
जवाब देंहटाएंजीवन में
एक ऐसा खालीपन है
जिसे दुनिया की समस्त स्त्रियाँ भी
नहीं भर सकती मिलकर
बिलकुल सही कहा आपने...मर्मस्पर्शी रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
humaree bhee bhavbheenee shruddhanjalee sweekare.
जवाब देंहटाएंek baat hai khaleepan walee baat sahee hai pr ye smaran rahe sanskar jo mile hai sadaiv marg darshan karte hai......hume kabhee akelapan nahee mahsoos hone dete .bado ka aasheesh bhee to sath rahta hai......
माँ
जवाब देंहटाएंकेवल पांच तत्वों से
नहीं है बनती
उसमें होता है
एक अतिरिक्त तत्व
संस्कार का
माँ को श्रद्धांजलि, हर एक को ऐसा ही प्रेरक व्यक्तित्व मिले।
जवाब देंहटाएंमाँ
जवाब देंहटाएंकेवल पांच तत्वों से
नहीं है बनती
उसमें होता है
एक अतिरिक्त तत्व
संस्कार का
बिलकुल सही बात कही है सर ।
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कल 27/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
माँ बस माँ होती है ... सबकी माँ एक सी होती है ... इन शब्दों में आपने इस बात को साबित कर दिया ... बहुत लाजवाब पंक्तियाँ हैं अरुण जी ...
जवाब देंहटाएंये सच है और इसे झुठलाना स्वयं ईश्वर के वश में भी नहीं| फिर भी हम इंसान हैं, हमें परिस्थियों के साथ जीवन जीना ही होता है| आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ मैं|
जवाब देंहटाएंघनाक्षरी समापन पोस्ट - १० कवि, २३ भाषा-बोली, २५ छन्द
माँ को विनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी आपकी ये रचना विलक्षण है...सच माँ माँ ही होती है...दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ...
जवाब देंहटाएंनीरज
"I will find the way or will make one" Kitnee badhiya seekh hai!
जवाब देंहटाएंMaa pe likhee rachana bhee behad pasand aayee!
मन को छू गये भाव..
जवाब देंहटाएं............
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
आपके बारे में जान कर अच्छा लगा.....माँ जी को श्रद्धांजलि|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना लिखी है ..अच्छे भाव मन को छूते हुए
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी ....आँखें भर आयीं पढ़कर ...... माँ को नमन ...
जवाब देंहटाएंdil ko chu gayi ye kriti.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर, कम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलतीहैं
जवाब देंहटाएंवशीर बद्र की दो लाइन याद आ रही है
मां मेरे गुनाहों को कुछ इस तरह से धो देती है,
जब वो बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअरुण भाई ..
जवाब देंहटाएंमाँ पर लिखी कविता ने मन को भिगा दिया .. मेरी माँ नहीं है और आज आपकी कविता को पढकर बहुत अच्छा लगा ..