इन दिनों
सभी रास्ते
एक ओर ही जाते हैं
कहीं से
मुड जाइये
किसी भी नुक्कड़ से
ले लीजिये
कोई भी मोड़
पहुचेंगे आप
वहीँ
पूछ लिया
किसी ने
मुझसे किसी का पता
मैंने दिखा दिया
एक रास्ता
लेकिन वह रास्ता भी
पंहुचा वहीँ
इस रास्ते पर
चलते चलते
बदल जाते हैं
लक्ष्य
दृष्टि
सरोकार
बहुत भीड़ है
इस रास्ते पर
सब जाना चाहते हैं
इस ओर ही
बहुत आसान है
यह राह
सिखाता है
करना समझौते
करना युक्ति
आगे पहुचने के लिए
गति और दिशा की
नहीं है कोई सीमा
बस कुछ करके
निकलना है आगे
ये रास्ते
बंद हैं
कुछ लोगों के लिए
जैसे मेरे लिए
मेरे गाँव के किसना, रामखेलाउन,
उर्मिया की माई के लिए
अरशद, फरहान के लिए
इस रास्ते पर
चलने के लिए
बने हैं कुछ
अघोषित नियम
जिनकी चर्चा ऐसे खुले में
होती नहीं
जब यह रास्ता
गाँव से चलता है
साथ होते हैं
लाखो लोग
होती है
उनकी आवाजें
उनकी जद्दोजहद
लेकिन जैसे जैसे
बढ़ता है कोई
इस रास्ते पर
छूटते जाते हैं
लोग
दबती जाती है
उनकी आवाजें
और लाल-नीली बत्तियों का शोर
भारी पड़ जाता है
दूसरे सभी शोरों, नारों
सरोकारों पर
यह रास्ता
वापिस नहीं लौटता
पीछे की ओर नहीं चलता
बस एक ओर चलता है
अपने मद में
संसद मार्ग कहते हैं इसे.
संसद मार्ग कहते हैं इसे. very good.
जवाब देंहटाएंयह रास्ता
जवाब देंहटाएंवापिस नहीं लौटता
पीछे की ओर नहीं चलता
बस एक ओर चलता है
अपने मद में
संसद मार्ग कहते हैं इसे....
बहुत सार्थक और सटीक टिप्पणी..बहुत सुन्दर
दबती जाती है
जवाब देंहटाएंउनकी आवाजें
और लाल-नीली बत्तियों का शोर
भारी पड़ जाता है
दूसरे सभी शोरों, नारों
सरोकारों पर
..........बिकुल सही फ़रमाया आपने बेहद प्रभावी और उम्दा रचना है....शुभकामनाएं।
भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंअरुण जी आपकी कविता पाठक को कवि के मंतव्य तक पहुंचाती हैं। आप की विशेषता है कि आप अतिरिक्त पच्चीकारी नहीं करते। अपनी साफ दृष्टि और संप्रेषणीयता से आप अपना एक अलग मुहावरा रचते हैं।
जवाब देंहटाएंयह रास्ता
वापिस नहीं लौटता
पीछे की ओर नहीं चलता
इस कविता की खास विशेषता है कि यह अपने इरादों में राजनैतिक होते हुए भी राजनैतिक लगती नहीं है। इसमें कहीं कोई जार्गन नहीं है।
और लाल-नीली बत्तियों का शोर
भारी पड़ जाता है
दूसरे सभी शोरों, नारों
सरोकारों पर
और जब मैं यह पढ़ता हूं तो यह कहने को विवश हो जाता हूं कि आपमें विचारधारात्मक प्रतिबद्धता होने के बावजूद आपकी कविता में कहीं भी विचारधारा हावी होती हुई नजर नहीं आती है।
सारे मार्ग संसद के उपांग हैं। इन्हीं सड़कों पर चल नेता संसद पहुँचते हैं।
जवाब देंहटाएंpraveen ji se sahmat hun .bahut sateek bat kahi hai aapne .badhai
जवाब देंहटाएंमार्ग तो सारे देश के ही संसद मार्ग की तरह हो चुके हैं अब.
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति.
यह रास्ता
जवाब देंहटाएंवापिस नहीं लौटता
पीछे की ओर नहीं चलता
बस एक ओर चलता है
अपने मद में
संसद मार्ग कहते हैं इसे.
Ha,ha,ha! Waise sach hai!
sahi kaha ...
जवाब देंहटाएंएक व्यथा और पीड़ा एक आम आदमी की, जो हमेशा से आपकी कविताओं का विषय रहा है, इस बार भी छूता है मन को, खडा करता है एक प्रश्न जिसका उत्तर हर व्यक्ति को खोजना है.. आपकी कविताओं की विशेषता है वे सवाल करती हैं.. जवाब नहीं देतीं, क्योंकि या तो उन प्रश्नों के जवाब नहीं किसी के पास या उनके जवाब सिर्फ उनके पास हैं जो संसद मार्ग के यात्री हैं, नीली-लाल बत्तियों वाले वाहनों के.. जिनके वाहन के शीशे बंद होते हैं और ऐसे सवालों के लिए "जैमर" लगे होते हैं.. अरुण जी, उस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं साठ सालों से!!
जवाब देंहटाएंजहां रास्ते पहुंचते हैं, वहीं से रास्ते खुलते-निकलते हैं.
जवाब देंहटाएंदबती जाती है
जवाब देंहटाएंउनकी आवाजें
और लाल-नीली बत्तियों का शोर
भारी पड़ जाता है
दूसरे सभी शोरों, नारों
सरोकारों पर
बिल्कुल सही कहा है आपने ... ।
ham bhi sansad marg pe hi hain:)
जवाब देंहटाएंवाह....सच कितना यतार्थ छुपा है इसमें.......इंसानी फितरत कितनी जल्दी रंग बदलती है ......वाह
जवाब देंहटाएंयही है ज़िन्दगी का सच ………रास्ते भी बदल जाते है और मुसाफ़िर भी और मंज़िले भी…………और इसी के साथ सबको जीना पडता है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है सर.
जवाब देंहटाएंसादर
संसद मार्ग या संसद ... दोनों ही एक स्थिति में आकार बहरे हो जाते हैं ... और जला देते अहिं वापस लौटने का रास्ता ...
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी प्रस्तुति है अरुण जी ..
सटीक विश्लेषण....
जवाब देंहटाएंसाधुवाद !!!!
इन मार्गों पर चलने के लिए
जवाब देंहटाएंतो बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं।।
रचना बहुत सटीक है!
भाई अरुण जी आपकी कविता कभी निराश नहीं करती अप कविता में जो कहना चाहते हैं बड़े सलीके से बिना शोरगुल के ख जाते हैं |बधाई
जवाब देंहटाएंभाई अरुण जी मेरे कमेंट्स में त्रुटियाँ हो गयी हैं आप के स्थान पर अप और कह के स्थान पर ख हो गया है |
जवाब देंहटाएंभीड़ सिर्फ एक शोर इससे ज्यादा कुछ नहीं जिसका कोई आस्तिव नहीं सिर्फ शोर के सिवा कुछ भी उसके बाद सबका अपना - अपना सफर कहाँ रूकती है भीड़ सब अपने रास्तों में गुम और सफर निरंतर जारी |
जवाब देंहटाएंये बात भी सही लगी ....संसद मार्ग कहते हैं इसे.:)
बहुत सुन्दर रचना दोस्त :)
मंजिल अपनी जगह है ,रास्ते अपनी जगह
जवाब देंहटाएंपर कदम ही लड़खड़ायें - कोई भला फिर क्या करे ?????
सुंदर अभिव्यक्ति.
बिना किसी बनाव-शृंगार के सीधे-सरल शब्दों में अधिक घनत्व वाली बात कविता में कह देना आपकी विशेषता है।
जवाब देंहटाएंयह बेजोड़ कविता आखि़री शब्द तक पाठक को बांध कर रखती है।
इस रास्ते पर
जवाब देंहटाएंचलने के लिए
बने हैं कुछ
अघोषित नियम
जिनकी चर्चा ऐसे खुले में
होती नहीं
एक दम सोलह आने सही बात वो भी डंके की चोट पर
सुंदर सटीक अभिव्यक्ति.. ....
जवाब देंहटाएंयह रास्ता
जवाब देंहटाएंवापिस नहीं लौटता
पीछे की ओर नहीं चलता
बस एक ओर चलता है
अपने मद में
....
मगर भाई जी संसद मार्ग नही ..महबूब के डगर तक
अब ये बात अलग है की सबके महबूब और सब की चाहतें अलग अलग हो सकती हैं.