शनिवार, 3 सितंबर 2011

एक अस्पष्ट कोलाज़ मैं


मैं
चला  जा रहा हूं
लक्ष्य
निर्धारित नहीं
दिशा नहीं ज्ञात
माध्यम भी अज्ञात
फिर भी
चला जा रहा हूं

बहुत शोर हो रहा है
किसका है शोर
क्यों है शोर
शोर का क्या है उद्देश्य
किसी को कुछ नहीं पता
सब निरुद्देश्य
इस शोर को 
अपने कंधे पर लादे
चला जा रहा हूँ मैं

बहुत रौशनी है
इस रास्ते पर
इतनी चकाचौंध
स्पष्ट कुछ दिखाई नहीं दे रहा
सबके चेहरे एक से हैं
कोई फर्क नहीं दिख रहा
एक दूसरे में
बीच बीच में
प्रकाश का एक विस्फोट सा होता है
और अट्टाहस करते हैं ये चेहरे
और दौड़ पड़ते हैं इसी रास्ते पर
एक दिशा में

थोडा आगे बढ़ा हूँ मैं
तो देख रहा हूं
एक ढलान है
बहुत तेज़
और उतर गया हूँ मैं
बिना गुरुत्वाकर्षण के
बिना घर्षण के
मैं गिरा  जा रहा हूं
जितना नीचे जा रहा हूं
शोर उतना ही अधिक हो रहा है
रौशनी उतनी ही तीक्ष्ण  हो रही है
और उतनी ही तेज़ी से ख़त्म हो रही है
मेरे सोचने समझने की शक्ति

मैं गिर रहा हूँ
यह रास्ता अंतहीन है
दिशाहीन है
इसके आकर्षण के आगे
कोई गुरुत्व नहीं करता है काम
मैं गिर रहा हूं
हो गया है फिर एक
रौशनी का विस्फोट
मैं अब इसी शोर का 
हो गया हूं हिस्सा 

एक अस्पष्ट कोलाज़
हो गया हूँ मैं

26 टिप्‍पणियां:

  1. एक अस्पष्ट कोलाज़
    हो गया हूँ मैं
    बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

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  2. pratikriya kya dun sir.. Aapki lekhni bahut acchhi lagti hai mujhe... Maine kai baar aapko padha hai...

    Aapko nimantran dena chahta hun... Ek baar aap jaroor mere blog par aaiye aur apne vichar se awagat karaiye to bahut khushi hogi...
    ummeed hai aap jaroor aayenge...

    anilavtaar.blogspot.com

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  3. एक अस्पष्ट कोलाज़ हो गया हूँ मैं "
    बड़े कैनवास की परिवेश प्रधान ,आंतरिक कुन्हासे को प्रतिबिंबित करती रचना .आप की ब्लोगिया दस्तक हमारे लिए महत्वपूर्ण है .शुक्रिया !
    जन आक्रोश आर हर शू मुखरित है .शुक्रवार, २ सितम्बर २०११
    शरद यादव ने जो कहा है वह विशेषाधिकार हनन नहीं है ?
    "उम्र अब्दुल्ला उवाच :"

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  4. लेकिन फिर भी कितना स्पष्ट...


    बढिया लगी जी कविता.

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  5. बढ़ता रहता,खुशी न जाने,
    किन मोड़ों पर मिले खड़ी।

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  6. 'पतन' विषय पर आज ये दूसरी कविता पढ़ी, यह भी अपनी बात कहने में सफल कविता है, बधाई

    बिना घर्षण के
    मैं गिरा जा रहा हूं
    जितना नीचे जा रहा हूं
    शोर उतना ही अधिक हो रहा है
    रौशनी उतनी ही तीक्ष्ण हो रही है
    और उतनी ही तेज़ी से ख़त्म हो रही है
    मेरे सोचने समझने की शक्ति

    जवाब देंहटाएं
  7. यह कविता अपने अंदर झांकने को विवश करती है.. झकझोरती है, बाध्य करती है सोचने पर कि कहीं इस कविता का "मैं" सचमुच मैं ही तो नहीं!!!
    .
    (अट्टाहस = अट्टहास)

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  8. आपका ही कोलाज है! बहुत स्पष्ट है। यह तो हमारा भी लग रहा है।

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  9. सुन्दर गहन अर्थ समेटे भावाव्यक्ति।

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  10. हम सभी ऐसे कोलाज़ हैं, बस आत्मावलोकन की फ़ुर्सत मिले जरा।
    अभिव्यक्ति वही, जो सबको आपबीती लगे और आप इसमें सफ़ल हैं।

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  11. सच ही तो है...बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  12. रौशनी का विस्फोट
    मैं अब इसी शोर का
    हो गया हूं हिस्सा
    bahut sunder abhivyakti .....

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  13. एक अस्पष्ट कोलाज़
    हो गया हूँ मैं...

    बहुत सुन्दर...

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  14. अपने एहसासों को दिशा देने को बेकरार रचना |
    बहुत सुन्दर |

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  15. मैं गिर रहा हूँ
    यह रास्ता अंतहीन है
    दिशाहीन है
    इसके आकर्षण के आगे
    कोई गुरुत्व नहीं करता है काम

    हर जीवन की यही नियति है।

    प्रभावशाली रचना।

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  16. गहन अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ

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  17. सुंदर भावों से सजी कविता।

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  18. जो ये स्वीकार कर ले की अस्पष्ट कोलाज हो गया हूँ तो उसकी ईमानदारी झलकती है वर्ना यहाँ तो सब करते वाही हैं जो एक कर रहा है पर स्वीकारते नहीं
    लाजवाब प्रस्तुति

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  19. बहुत ही शानदार रचना है....लाजवाब

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  20. बिना सबब हो जाना जीवन का गहरे तक सालता है ... घोर निराशा में कभी कभी ऐसे पल आते हैं ... लाजवाब अभिव्यक्ति ..

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  21. १.
    आपने
    पढाया तो था
    'प' से प्यार
    न जाने
    कब कैसे
    बन गया
    'प' से पैसा ...

    very appealing lines Arun ji.

    .

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  22. आपकी भावपूर्ण प्रस्तुति अदभूत अहसास कराती है.
    आभार.

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