१,
आटा
थोडा गीला
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी
२.
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी
२.
मैं
तुम
बच्चे ,
गीले बिस्तर की गंध
कितनी सुगंध
३.
न कभी
गुलाब
न कोई
गीत
फिर भी जीवन में
कितना संगीत
४.
सूखी रोटी
नून
और तेरा साथ ,
आह ! कितना स्वाद
५.
तीज
त्यौहार पर
तेरा उपवास
गरीबी को छुपाने का
अदभुत प्रयास
अरुण जी
जवाब देंहटाएंनमस्कार !
बहुत मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं मन को छू गईं
संवेदनशील और गहरे एहसासों से भरी है....क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंbahot sunder.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंन कभी
जवाब देंहटाएंगुलाब
न कोई
गीत
फिर भी जीवन में
कितना संगीत
Nihayat sundar panktiyan!
तीज
जवाब देंहटाएंत्यौहार पर
तेरा उपवास
गरीबी को छुपाने का
अदभुत प्रयास
अद्भुत क्षणिकाएं... एहसास से गुनी गुथी!
तीज
जवाब देंहटाएंत्यौहार पर
तेरा उपवास
गरीबी को छुपाने का
अदभुत प्रयास
इस क्षणिका ने मन को छू लिया !
सारी क्षणिकाएं अच्छी लगीं !
आभार !
एक गृहलक्ष्मी की सम्पूर्ण जीवन कथा इन क्शंकाओं में सिमट आयी है!!अरुण जी आप साधुवाद के पात्र हैं!!
जवाब देंहटाएंसटीक क्षणिकाएँ
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, मसीहा बनने का संस्कार लिए ....
एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएँ हैं सर!
जवाब देंहटाएंसादर
सूखी रोटी
जवाब देंहटाएंनून
और तेरा साथ ,
आह ! कितना स्वाद
बहुत सुन्दर.
न कभी
जवाब देंहटाएंगुलाब
न कोई
गीत
फिर भी जीवन में
कितना संगीत
सारी क्षणिकाएं बहुत ही अर्थपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं
अति सुन्दर |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं ||
terahsatrah.blogspot.com
dcgpthravikar.blogspot.com
बढ़िया!!
जवाब देंहटाएंrashmi ravija ने आपकी पोस्ट " गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंन कभी
गुलाब
न कोई
गीत
फिर भी जीवन में
कितना संगीत
सारी क्षणिकाएं बहुत ही अर्थपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं....
जवाब देंहटाएंसादर...
वाह, छोटी छोटी बातों में छिपा बड़ा प्यार।
जवाब देंहटाएंsundar ahsason se bhari...
जवाब देंहटाएंअरुण जी,आपके लेखन में जादू है जी.
जवाब देंहटाएंदिल में जगह बना लेता है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ASHA BISHT ने आपकी पोस्ट " गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंsundar ahsason se bhari...
बहुत सुन्दर क्षणिकाएं
जवाब देंहटाएंसभी....बहुत जबरदस्त!! आनन्द आ गया!
जवाब देंहटाएंchhoti zindagi ke bade arth
जवाब देंहटाएंएहसासों का समंदर बिछा दिया मानो. खूबसूरत!
जवाब देंहटाएंलाज़वाब! सभी क्षणिकाएं दिल को छू गयीं..
जवाब देंहटाएंमैं
जवाब देंहटाएंतुम
बच्चे ,
गीले बिस्तर की गंध
कितनी सुगंध
.....
कैसे अभी तक वो गंध / सुगंध आपकी स्मृतियों में बची बसी हुई रह गयी मैं तो यही सोंच कर हैरान हूँ !
अरुण जी सच में कमाल हैं है आप मानो आप मेरी बात एक आना भी अतिशयोक्ति नहीं बोलता मैं अपनी कोशिश भर !
लाजवाब अरुण जी ... बहुत समय बाद आपको पढ़ने को मिला ... बहुत ही सम्वेदंशेल हमेशा की तरह ...
जवाब देंहटाएंबहत सुन्दर क्षनिकाए
जवाब देंहटाएंअरुण जी इन कविताओं (हां, मैं तो हरेक को पूरी कविता ही मान रहा हूं) में आपने तो जीवन के सबसे अधिक भवुक क्षणों को गूंथ दिया है। प्रत्येक कविता से असंक्य कहानिया घर कर गई मन में।
जवाब देंहटाएंवाह...वाह...वाह...
जवाब देंहटाएंसभी के सभी बेजोड़, पर अंतिम वाली की तो क्या कहूँ....
लाजवाब...
लाजवाब क्षणिकाएं...
जवाब देंहटाएंतीज
जवाब देंहटाएंत्यौहार पर
तेरा उपवास
गरीबी को छुपाने का
अदभुत प्रयास
बहुत सुन्दर |
सभी क्षणिकाएं बहुत सुन्दर हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर क्षणिकाएं| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे मए पोस्ट नकेनवाद पर आप सादर आमंत्रित हैं । धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंतीज
जवाब देंहटाएंत्यौहार पर
तेरा उपवास
गरीबी को छुपाने का
अदभुत प्रयास...
bahut sundar..
.
संवेदनशील और गहरे एहसासों से लवरेज सुंदर क्षणिकाएँ. बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए.
जवाब देंहटाएंजब भी आपके पोस्ट पर आया हूँ, हर समय कुछ न कुछ सीखने वाला चीज मिला है। यह पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएं