मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं



१,
आटा 
थोडा गीला
फिर भी गीली
तुम्हारी हंसी

२.
मैं 
तुम 
बच्चे , 
गीले बिस्तर की गंध 
कितनी  सुगंध 

३.
न कभी 
गुलाब 
न कोई 
गीत 
फिर भी जीवन में 
कितना संगीत 

४.
सूखी रोटी
नून 
और तेरा साथ , 
आह ! कितना स्वाद 

५.
तीज 
त्यौहार पर 
तेरा उपवास 
गरीबी को छुपाने का 
अदभुत प्रयास 

39 टिप्‍पणियां:

  1. अरुण जी
    नमस्कार !
    बहुत मर्मस्पर्शी क्षणिकाएं मन को छू गईं

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  2. संवेदनशील और गहरे एहसासों से भरी है....क्षणिकाएं

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  3. न कभी
    गुलाब
    न कोई
    गीत
    फिर भी जीवन में
    कितना संगीत
    Nihayat sundar panktiyan!

    जवाब देंहटाएं
  4. तीज
    त्यौहार पर
    तेरा उपवास
    गरीबी को छुपाने का
    अदभुत प्रयास
    अद्भुत क्षणिकाएं... एहसास से गुनी गुथी!

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  5. तीज
    त्यौहार पर
    तेरा उपवास
    गरीबी को छुपाने का
    अदभुत प्रयास

    इस क्षणिका ने मन को छू लिया !
    सारी क्षणिकाएं अच्छी लगीं !
    आभार !

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  6. एक गृहलक्ष्मी की सम्पूर्ण जीवन कथा इन क्शंकाओं में सिमट आयी है!!अरुण जी आप साधुवाद के पात्र हैं!!

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  7. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

    कल 14/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, मसीहा बनने का संस्‍कार लिए ....

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  8. एक से बढ़ कर एक क्षणिकाएँ हैं सर!

    सादर

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  9. सूखी रोटी
    नून
    और तेरा साथ ,
    आह ! कितना स्वाद
    बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  10. न कभी
    गुलाब
    न कोई
    गीत
    फिर भी जीवन में
    कितना संगीत

    सारी क्षणिकाएं बहुत ही अर्थपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं

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  11. अति सुन्दर |
    शुभकामनाएं ||
    terahsatrah.blogspot.com
    dcgpthravikar.blogspot.com

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  12. rashmi ravija ने आपकी पोस्ट " गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    न कभी
    गुलाब
    न कोई
    गीत
    फिर भी जीवन में
    कितना संगीत

    सारी क्षणिकाएं बहुत ही अर्थपूर्ण और ख़ूबसूरत हैं

    जवाब देंहटाएं
  13. वाह, छोटी छोटी बातों में छिपा बड़ा प्यार।

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  14. अरुण जी,आपके लेखन में जादू है जी.
    दिल में जगह बना लेता है.
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

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  15. ASHA BISHT ने आपकी पोस्ट " गृहस्थी : कुछ क्षणिकाएं " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:

    sundar ahsason se bhari...

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  16. सभी....बहुत जबरदस्त!! आनन्द आ गया!

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  17. एहसासों का समंदर बिछा दिया मानो. खूबसूरत!

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  18. लाज़वाब! सभी क्षणिकाएं दिल को छू गयीं..

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  19. मैं
    तुम
    बच्चे ,
    गीले बिस्तर की गंध
    कितनी सुगंध
    .....
    कैसे अभी तक वो गंध / सुगंध आपकी स्मृतियों में बची बसी हुई रह गयी मैं तो यही सोंच कर हैरान हूँ !
    अरुण जी सच में कमाल हैं है आप मानो आप मेरी बात एक आना भी अतिशयोक्ति नहीं बोलता मैं अपनी कोशिश भर !

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  20. लाजवाब अरुण जी ... बहुत समय बाद आपको पढ़ने को मिला ... बहुत ही सम्वेदंशेल हमेशा की तरह ...

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  21. अरुण जी इन कविताओं (हां, मैं तो हरेक को पूरी कविता ही मान रहा हूं) में आपने तो जीवन के सबसे अधिक भवुक क्षणों को गूंथ दिया है। प्रत्येक कविता से असंक्य कहानिया घर कर गई मन में।

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  22. वाह...वाह...वाह...

    सभी के सभी बेजोड़, पर अंतिम वाली की तो क्या कहूँ....

    लाजवाब...

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  23. तीज
    त्यौहार पर
    तेरा उपवास
    गरीबी को छुपाने का
    अदभुत प्रयास

    बहुत सुन्दर |

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  24. बहुत सुन्दर क्षणिकाएं| धन्यवाद|

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  25. बहुत सुन्दर प्रस्तुति । मेरे मए पोस्ट नकेनवाद पर आप सादर आमंत्रित हैं । धन्यवाद |

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  26. तीज
    त्यौहार पर
    तेरा उपवास
    गरीबी को छुपाने का
    अदभुत प्रयास...

    bahut sundar..

    .

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  27. संवेदनशील और गहरे एहसासों से लवरेज सुंदर क्षणिकाएँ. बधाई सुंदर प्रस्तुति के लिए.

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  28. जब भी आपके पोस्ट पर आया हूँ, हर समय कुछ न कुछ सीखने वाला चीज मिला है। यह पोस्ट अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "खुशवंत सिंह" पर आपकी प्रतिक्रियायों की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी। धन्यवाद ।

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