चल रही है
जोरदार बहस
जोर जोर से चीखते हुए
लोग सुनवाना चाहते हैं
मनवाना चाहते हैं बात
उन्हीं के वही लोग
बाँट रहे हैं
विज्ञप्तियां
जारी कर रहे हैं
वक्तव्य
पुष्टि कर रहे हैं
जोरदार बहस की
उन्हीं के कुछ लोग
बैठे हैं
अखबारों में
मोटा मोटा चश्मा चढ़ाये
टी वी पटल पर भी
कब्ज़ा है
उन्हीं लोगों का
उनकी आँखों पर भी है
वैसा ही मोटा मोटा चश्मा
जिनसे छूट जाती हैं
साधारण मोटी बातें
उन्हीं के लोग
घुस गए हैं
हमारे घर आँगन में
बाँट दिया है
कुछ को
बहस के इस ओर,
कुछ को
उस ओर
बहस
हमारे बारे में हैं
हम भूखे क्यों हैं !
हमें क्यों नहीं रोटी मिली!
हमारे पेड़ क्यों कट गए !
हमारे हिस्से की जमीन क्यों छिन गई !
कितने में होगा हमारा गुज़ारा !
नए नए विषय उठाते हैं
उन्हीं के लोग
कहते हैं
वर्षों से जारी है बहस
मोटे हो रहे हैं
उन्हीं के लोग
कर हम पर बहस
ye antheen bahas ....badhiyaa
जवाब देंहटाएंआपके बारे में ही बात, आपका ही धन, आपकी ही चिन्ता।
जवाब देंहटाएंबड़े हमारे ।
जवाब देंहटाएंउनकी खैनी का महत्व, अपनी कहनी व्यर्थ ।
गई भैंस-मम पानी में, इन बहसों के अर्थ ।
बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंयही तो त्रासदी है...!
जवाब देंहटाएंबेहद सटीक बात कही गयी है कविता में!
बहस यह बहस ... अंतहीन बहस !
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ इस लाजवाब पोस्ट के लिये…………हकीकत बयाँ कर दी।
जवाब देंहटाएंऔर ऊपर से तुर्रा ये कि आप ही ने तो चुन कर भेजा है हमें...
जवाब देंहटाएंकालिन्स और दामनीक कि किताब फ़्रीडम एट मिडनाईट की पंक्तियाँ जो उन्होने ब्रिटीशों को लक्षित कर लिखी थी भारतीय रहनुमाओं के परिप्रेक्ष्य मे आज तब से ज्यादा प्रासंगिक लगती है, (जैसा याद आ रहा इस वक़्त) “वो प्रतिदिन भारतियों का भला करने निकलते थे... भारतियों से बिना पुछे कि उनकी भलाई किसमे है....”
जबर्दस्त रचना।
सादर।
पक्ष और प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
जवाब देंहटाएंबात इतनी है कि कोई पुल बना है।
एक ओर बहस पे बहस, दूसरी ओर तारीख पे तारीख.. कोई ईमानदारी से आकाश में सुराख करने को पत्थर उछालना ही नहीं चाहता.. एक कंकड भी उठाया होता तो बहस बेमानी हो जाता!!
मौज कर रहे हैं उन्ही के लोग - अच्छी प्रस्तूति
जवाब देंहटाएंएकदम नई सोच... सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंसामयिक और सामाजिक सोच,आला दर्जे की कविता !
जवाब देंहटाएंसाधारण और असाधारण की लड़ाई है और रहेगी ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
waah bahut hi shandar hai post.
जवाब देंहटाएंकडुवे सच को लिखा है अरुण जी ... बहस पे बहस हो रही है और आम आदमी पे हो रही है और आम आदमी ही मर रहा है ...
जवाब देंहटाएंवाह.............
जवाब देंहटाएंबढ़िया कटाक्ष...........
सादर
अनु
वाह!!!!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कटाक्ष.................
टिप्पणी स्पाम में जा रही है सर...
सादर
अनु
शानदार रचना- उम्दा सोच.
जवाब देंहटाएंये शाश्वत बहस है, इसीलिए ज़ारी है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब कटाक्ष....बेहतरीन प्रस्तुति
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