सोमवार, 26 अगस्त 2013

इसी देश की महिलाएं



जब ढेरो महिलाएं मूंह अँधेरे 
जाती हैं झुण्ड बनाकर 
खुले में शौच,  
देश की राजधानी में 
पब से लौट रही होती हैं 
महिलाएं 
रात भर के जगरने के बाद 
बाँट कर दारु आदि आदि 

दोनों ओर महिलाएं 
इसी देश की हैं 

जब रेलवे यार्ड में 
एक बोरी कोयले के एवज में 
छूने देती हैं देह 
उसी समय 
किसी फैशन सप्ताह में 
रैम्प पर जाने से पहले 
कोई छू रहा होता है 
उनका देह भी 

दोनों ओर महिलाएं 
इसी देश की हैं 

जब इण्डिया गेट पर 
दे रही होती हैं 
कुछ महिलाएं धरना प्रदर्शन 
कुछ महिलाएं बिछी होती हैं 
इच्छा बे-इच्छा 
अशोक रोड, राजेंद्र प्रसाद रोड, 
जनपथ आदि सडको पर स्थित
काली गुफाओं में 

दोनों ओर महिलाएं 
इसी देश की हैं

महिलाएं 
अभी आकाश में हैं 
दफ्तरों में हैं, 
पांच सितारा होटलों में हैं 
हैं डाक्टर  इंजीनियर
लेकिन सबसे पहले देह हैं 
इस देश की महिलाएं 

12 टिप्‍पणियां:

  1. विदेश में कुछ अलग
    सोच होती होगी ?
    लगता तो नहीं है
    सोचने वाले भी तो
    इस देश के ही हैं देह को !

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  3. देह से इतर सोच के लिए मानसिकता बदलने की ज़रूरत है । जब तक पुरुष सत्ता हावी रहेगी तब तक नारी को केवल देह तक ही समझा जाएगा । समान इंसान कब समझा जाएगा ?

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. उफ्फ्फ ..रोंगटे खड़े कर दिए इस कविता ने ..स्त्री को देह से परे देखना अभी सीखा नहीं हमारे समाज ने

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  6. कविता के भाव और प्रतिमान अच्छे लगे > स्त्री देह पर इस तरह की गंभीर कविता पहले देखने मे नाही मिली >

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  7. सन्नाट कटाक्ष किया है, वर्तमान स्थितियों पर..

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  8. लेकिन सबसे पहले देह हैं
    इस देश की महिलाएं

    सच कहा ...आज के वक्त में भी पुरुष के लिए नारी सिर्फ देह है ...उनकी नज़र इस से हटती ही नहीं :(

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  9. गहरी संवेदना लिए ... वर्तमान को यंत्रण को उकेरा है ...
    निःशब्द हूं अरुण जी ...

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  10. कुछ पुरुषो के लिए नारी सिर्फ देह ही है आज भी ...मैं बस इतना ही कहूँगा ...वर्तमान स्थितियों पर sateek rachna

    संजय भास्कर
    शब्दों की मुस्कराहट पर ...तभी तो खामोश रहता है आईना

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