नहीं बचाएगा
अपने भक्तो को
बचाएगा तो
आपका चुना हुआ
प्रधानमंत्री भी नहीं
दोनों में से कोई भी
नहीं करेगा
कोई चमत्कार
ईश्वर व्यस्त है
नहीं देगा कोई
वरदान वह
या करेगा चमत्कार ही
व्यस्त है
आपका चुना हुआ
प्रधानमंत्री भी
भक्तोंको वोटों में
तब्दील करने में
हमारे बचने की
है केवल एक शर्त
जो बच जाएँ
भक्त और वोट होने से
क्या करें, हम किसके सहारे जाये।
जवाब देंहटाएंसटीक बात.....
जवाब देंहटाएंमगर बचें कैसे....कोई तो पालनहार हो..
अनु
हम जैसे भक्त
जवाब देंहटाएंबनना भी चाहेंगे
तो भी कोई
नहीं बनायेगा
उसे अगर पता
चल गया हम
आ रहे हैं
भक्ति करने
वो भगवान खुद
ही भाग जायेगा !
साधु-साधु!
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
हमारे बचने की
है केवल एक शर्त
जो बच जाएं
भक्त और वोट होने से
:(
हममें से जो जो दक़ियानूस मज़हबी , भक्त और वोट बन चुके हैं , उनके कारण भी तो डूब रहा है देश !
आदरणीय बंधुवर अरुण चन्द्र रॉय जी
अच्छी कविता है , जिसमें मनन के लिए विचार भी हैं ।
लेकिन प्रधानमंत्री तो हम पर थोपा जाता है , हम चुनते कहां हैं ?
:((
मंगलकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
राजेंद्र भाई, प्रधानमंत्री से हमारा तात्पर्य पूरे सरकारी तंत्र से है, जो देश के तमाम हालातो के लिए जिम्मेदार है।
हटाएंजी , सहमत हूं भाई अरुण जी !
पुनः श्रेष्ठ कविता के लिए साधुवाद !
सादर...
हमारे बचने की
जवाब देंहटाएंहै केवल एक शर्त
जो बच जाएँ
भक्त और वोट होने से
बढ़िया रचना संसार।
जाएँ तो जाएँ कहाँ ?
जवाब देंहटाएंहालंकि बचना तो तब भी सुनिश्चित नही है । हाँ एक विकल्प है सही रास्ते का । अच्छी कविता ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंदोनों नहीं बचायेंगे पर जनता बाख जाएगी यही तो प्रकृति है .अच्छी कविता
latest postएक बार फिर आ जाओ कृष्ण।
कोई रास्ता निकालना तो पड़ेगा.
जवाब देंहटाएंबंच पायें तो बचें ।
जवाब देंहटाएं