मित्र
कभी बैठना पल दो पल
वृक्षों के निकट
करना उनसे बाते .
वे कभी नहीं करेंगे
कोई शिकायत अपने हत्यारे के बारे में
जानते हुए कि तुम उन लोगों में शामिल हो
उनके साथ खड़े हो
जिन्होंने की है वृक्षों की हत्या
वे कोई शिकायत नहीं करेंगे
उनके पत्ते मुस्कुराएंगे
हवा के झोके के साथ
अपनी गहरी छाया में वे तुम्हे
तब तक बिठाएंगे जब तक तुम स्वयं
उठकर चले न जाओ .
समय जब नहीं इन दिनों दुनिया के पास
दुनिया एक ही दिशा में भागी जा रही है
मंजिल अस्थायी हो गए हैं और निरंतर विस्थापित हो रहे हैं
वृक्ष टिके रहते हैं जड़ों के साथ
जब तक कि हम तुम उन्हें
जड़ समेत उखाड़ न फेंके
फिर भी अंतिम सांस तक लड़ते हैं वृक्ष .
वृक्ष के पास हमारी तुम्हारी तरह
शब्द नहीं होते
वे संवाद करते हैं
रंगों से , हवा की तरंगों से
वे उदास होते हैं तो चुप हो जाते हैं
उनके पत्ते,
दुःख में वे पीले पड जाते हैं और सुख में गहरे हरे
उन जैसा रंग हम बना नहीं सकते
फिर भी वृक्षों के पास नहीं कोई अहंकार
कभी बैठना पल दो पल
हो सके तो सीखना
बिना शब्दों के संवाद, टिके रहना
और तो और हत्यारे के साथ रहना .
कभी बैठना पल दो पल
वृक्षों के निकट
करना उनसे बाते .
वे कभी नहीं करेंगे
कोई शिकायत अपने हत्यारे के बारे में
जानते हुए कि तुम उन लोगों में शामिल हो
उनके साथ खड़े हो
जिन्होंने की है वृक्षों की हत्या
वे कोई शिकायत नहीं करेंगे
उनके पत्ते मुस्कुराएंगे
हवा के झोके के साथ
अपनी गहरी छाया में वे तुम्हे
तब तक बिठाएंगे जब तक तुम स्वयं
उठकर चले न जाओ .
समय जब नहीं इन दिनों दुनिया के पास
दुनिया एक ही दिशा में भागी जा रही है
मंजिल अस्थायी हो गए हैं और निरंतर विस्थापित हो रहे हैं
वृक्ष टिके रहते हैं जड़ों के साथ
जब तक कि हम तुम उन्हें
जड़ समेत उखाड़ न फेंके
फिर भी अंतिम सांस तक लड़ते हैं वृक्ष .
वृक्ष के पास हमारी तुम्हारी तरह
शब्द नहीं होते
वे संवाद करते हैं
रंगों से , हवा की तरंगों से
वे उदास होते हैं तो चुप हो जाते हैं
उनके पत्ते,
दुःख में वे पीले पड जाते हैं और सुख में गहरे हरे
उन जैसा रंग हम बना नहीं सकते
फिर भी वृक्षों के पास नहीं कोई अहंकार
कभी बैठना पल दो पल
हो सके तो सीखना
बिना शब्दों के संवाद, टिके रहना
और तो और हत्यारे के साथ रहना .
हिम्मत चाहियेगी बैठने के लिये वृक्षों के बीच । सुन्दर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सुशील जी .
हटाएंअत्यंत विचारणीय ! एवं मंथन योग्य विषय ! विचार करना होगा !आपकी रचना बहुत ही सराहनीय है ,शुभकामनायें ,आभार
जवाब देंहटाएं"एकलव्य"
रचना पढने और सराहने के लिये धन्यवाद
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल jbfवार (27-08-2017) को "सच्चा सौदा कि झूठा सौदा" (चर्चा अंक 2709) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहद सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सुनीता जी .
हटाएंकमाल की कविता
जवाब देंहटाएंलाजवाब ... सच है वो अपना दुःख नहीं व्यक्त करते ... किसी से भी नहीं ... काश हम देख पायें उनका दर्द जो हमने ही दिया है ...
जवाब देंहटाएंजी सर वे अपना दुःख व्यक्त नहीं करते . हम सुनेंगे भी कहाँ .
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